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Saturday, July 7, 2018

महेंद्र सिंह धोनी : क्रिकेट का लोकनायक


महेंद्र सिंह धोनी के प्रति भारतीय लोकमानस के अदम्य अाकर्षण का क्या रहस्य है? इस रहस्य की पड़ताल करने पर आप पाएंगे कि इसके ब्योरे महेंद्र सिंह धोनी के व्यक्तित्व के बारे में जितनी सूचना देते हैं, उतना ही वे भारतीय लोकमानस के बारे में भी हमें बतलाते हैं.

यह वही रहस्य है, जिसके कारण तकनीकी कौशल से सुसज्जित सुनील गावस्कर के युग में अनगढ़ हीरे जैसा कपिल देव अवाम के दिल में बसा हुआ था. 

और आज भी विराट कोहली, शिखर धवन, रोहित शर्मा जैसे आला दर्जे के स्ट्रोकमेकर्स की तुलना में महेंद्र सिंह धोनी का खेल ग़ैरपरिष्कृत ही कहलाएगा। लेकिन चौथाई सदी तक खेलने के बावजूद ये खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी जैसी व्यापक लोकमान्यता हासिल नहीं कर सकते।


प्रतिभा और अभिमान कभी भी भारतीय लोकमानस को आकृष्ट नहीं करते। वह सरलता और आत्मत्याग जैसे गुणों पर मर मिटता है। पश्चिम योद्धाओं की पूजा करता है, भारत तपस्वियों की।

लियोनल मेस्सी और सचिन तेंदुलकर की अकसर तुलना की जाती है। एक पहलू से लियोनल मेस्सी और महेंद्र सिंह धोनी के बीच भी तुलना की जा सकती है।

मसलन यही कि आप लियोनल मेस्सी को कभी इस बात के लिए राज़ी नहीं कर सकते कि वह मैदान के तीसरे हिस्से में सेंटर फ़ॉरवर्ड की तरह टंगे हुए विजयी गोल की प्रतीक्षा करता रहे। वह बार-बार गेंद लेने मिडफ़ील्ड में जाएगा और प्लेमेकर की भूमिका निभाएगा।


आप महेंद्र सिंह धोनी को भी इस बात के लिए तैयार नहीं कर सकते कि वह बल्लेबाज़ी में तीसरे या चौथे क्रम पर उतरे और धुआंधार शतक लगाकर जीत का सेहरा अपने सिर बांध ले। वह छठे या सातवें नंबर पर ही उतरेगा और खेल को फ़िनिश करने की कोशिश करेगा।

यह आत्मत्याग, उत्तरदायित्व की यह चेतना, यह दलनायक होने की अनुभूति, यह समूह-भावना और इसके बावजूद टीम को जीत न दिला पाने के बाद व्यक्तित्व में पैठी गरिमामयी उदासी, यह वो गुण हैं, जो लोकमानस के अंतर्तम को सीधे छूते हैं. जीत का जश्न मनाते उद्दंड और उद्धत खिलाड़ियों के बजाय उसका ध्यान ऐसे नायकों पर जा टिकता है.

हारकर जीतने वाले को बाज़ीगर ही नहीं, लियोनल मेस्सी और महेंद्र सिंह धोनी भी कहते हैं!


जब महेंद्र सिंह धोनी पहले-पहल भारतीय क्रिकेट के पटल पर उभरे थे तो ये तीसरे क्रम पर उनके द्वारा खेली गई दो विस्फोटक पारियों की वजह से था : पाकिस्तान के ख़िलाफ़ 148 और श्रीलंका के खिलाफ़ 183 नाबाद. उनके कैरियर का सर्वोच्च शिखर भी विश्वकप फ़ाइनल में तब आया, जब वे ऊपर बल्लेबाज़ी करने उतरे और खुलकर खेले. टीम को जीत दिलाकर ही लौटे।

महेंद्र सिंह धोनी अपने कैरियर की शुरुआत में ही भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान बना दिया गए थे. अगर वे तीसरे या चौथे क्रम पर बल्लेबाज़ी करने का निर्णय लेते तो उन्हें ऐसा करने से कोई रोक नहीं सकता था. 

लेकिन उन्होंने अपने लिए फ़िनिशर का रोल चुना. वे नींव के पत्थर बन गए. उन्‍होंने ख़ुद को 30 गेंदों में नाबाद 42 रन बनाने वाले खिलाड़ी तक सीमित कर लिया. जबकि वे बड़ी आसानी से एकदिवसीय मैचों में 32 शतक और 15 हज़ार रन बनाने वाले खिलाड़ी बन सकते थे, क्‍योंकि वे एक ऐसे देश में खेल रहे हैं, जो आंकड़ों और शतकों के प्रति आविष्ट है. लेकिन वे एक बल्‍लेबाज़ और रन मशीन के रूप में अपनी विरासत के प्रति अधिक सचेत नहीं थे, टीम का हित उनके लिए साध्य था।


महेंद्र सिंह धोनी को तब कैसा लगता होगा, जब इतने सालों तक धीरे धीरे ख़ुद को गलाने के बावजूद उन्हें अपमानित किया गया, उन्हें टीम पर बोझ की तरह देखा जाने लगा और युवा खिलाड़ी उनकी आंखों में आंखें डालकर उनका कहा मानने से इनकार करते रहे? लेकिन महेंद्र सिंह धोनी चुपचाप गरल पीकर मुस्कराता रहता है और कभी शिक़ायत नहीं करता. मुझे यक़ीन है कि वह एकांत में बैठकर रोता होगा. 

जलसे में जश्न मनाने वाले खिलाड़ियों के लिए अवाम ताली बजाता है. लेकिन वह अपने दिल में जगह केवल उन्हीं नायकों को देता है, जो खेल के बाद चुपचाप पृष्ठभूमि में चले जाते हैं और एकांत में बैठकर रोते हैं.

महेंद्र सिंह धोनी के जीवन पर बनाई गई फ़िल्म ने धोनी के कल्ट में उत्तरोत्तर इज़ाफ़ा ही किया है. अवाम ने उसके जीवन के सुख दुःख संघर्ष से अपनी कहानी को जोड़कर देखा. धोनी के पास खेल की एक ज़मीनी समझ है. वह अकादमियों से निकला हुआ खिलाड़ी नहीं है. वह झारखंड की धरती से निकला अनगढ़ हीरा है. इसलिए उसे क्रिकेट के "लोकनायक" की संज्ञा दी जा सकती है।


आज महेंद्र सिंह धोनी अपने कैरियर की संध्यावेला में पहुंच गए हैं. मैच के दौरान खेल मैदानों में आज जो उनके नाम की गूंज सुनाई देती है, उसमें विदा की ध्वनि भी सम्मिलित है. लोग जानते हैं कि अब वे अधिक दिन नहीं खेलेंगे. बहुत संभव है वे अचानक एक दिन संन्‍यास की घोषणा कर दें, जैसे उन्‍होंने टेस्‍ट क्रिकेट से संन्‍यास की घोषणा करके सबको चौंका दिया था. 

निश्चित ही धोनी ऐसी किसी विजय की प्रतीक्षा नहीं कर रहे हैं, जिसके बाद उन्‍हें कंधों पर बिठाकर मैदान में घुमाया जाए, जैसे सचिन तेंडुलकर को घुमाया गया था. या उन्‍हें सांत्‍वनापूर्वक चंद मिनटों के लिए अपने आख़िरी मैच में कप्‍तानी करने का अवसर दिया जाए, जैसे सौरव गांगुली को दिया गया था. 

धोनी इस सबके लिए नहीं बना है. ऐसा उसका मिजाज़ नहीं है।

अपने शिखर दिनों में महेंद्र सिंह धोनी मैच जीतने के बाद मोटरसाइकिल से मैदान की परिक्रमा किया करते थे।

बहुत सम्भव है वे एक दिन इसी तरह मोटरसाइकिल उठाएंगे और भारतीय क्रिकेट से दायरों से चुपचाप दूर चले जाएंगे।

शुशोभित भैया की फेसबुक वॉल से।

कड़कमिजाजी की तरफ से धोनी को उनके जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।

2 comments:

  1. Shukriya ms dhoni ke janmdin pr itne achhe lines likhne k liye

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  2. बहुत ही बेहतरीन

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