पूरी दुनिया में मच्छरों की क़रीब 3500 प्रजातियां पाई जाती हैं लेकिन इनमें से केवल छह फ़ीसद प्रजातियों की मादाएं ही इंसानों का ख़ून पीती है। ज़्यादातर नस्लें पौधों और फलों के रस पर ज़िंदा रहते हैं। रिसर्च की मानें तो मच्छरों की केवल 100 प्रजातियां ही ऐसी हैं, जो इंसानों के लिए नुक़सानदेह हैं।
इन बातों से लगता है कि मच्छर तो 'ह्यूमन फ्रेंडली' ही है, फिर इन्हें हम 'विलेन' बनाने पर क्यों तुले हुए हैं..??
दरअसल इन्हें विलन हमने नहीं बल्कि इनके जानलेवा रिकॉर्ड ने बनाया है। दुनियाभर में हर साल एक जीव के द्वारा दूसरे जीव की जान लेने में 'मच्छर' सबसे आगे हैं। आंकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में जहां एक साल में सांप 50 हजार लोगों की जान लेते हैं वहीं मच्छरों द्वारा लगभग 10 लाख लोगों की जान जाती है। मच्छरों के शिकार इन लोगों में से ज़्यादातर ग़रीब देशों के होते हैं।
भारत में मच्छरों की 400 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है और इनमें से ज्यादातर जानलेवा ही होती है। भारत में हर साल लगभग 25000 लोग मच्छरों के कारण अपनी जान गंवाते हैं।
दुनियाभर में पाई जाने वाली मच्छरों की सबसे अधिक जानलेवा प्रजातियां-
* एडीज-एजेप्टि- ये मच्छर येलो फीवर, डेंगू और जीका वायरस फैलाते हैं और दुनिया के सभी गर्म देशों में पाए जाते हैं। ये दिन में काटते हैं।
* एडीज एलबोपिक्ट्स- ये भी येलो फेवर, डेंगू और नील वायरस फैलाते हैं। ये भी दुनिया के सभी गर्म देशों में पाए जाते हैं।
* एनोफिलिज- मच्छरों की ये नस्ल ही मलेरिया फैलाती है। मादा एनोफिलिस मच्छर एक बार में 100-150 अंडे देती हैं जिसके लिए उन्हें अधिक मात्रा में प्रोटीन की जरूरत होती है , ये प्रोटीन उन्हें इंसानों के खून से आसानी सेप्राप्त हो जाती है। लेकिन खून पीने के साथ ये इंसानों में मलेरिया के वायरस छोड़ आती है जिसके कारण विश्व में सबसे अधिक मौतें होती है। मलेरिया के मच्छर रात में काटते हैं और विश्वभर में पाए जाते हैं।
हमें काटना मच्छरों के जीवन चक्र का अनिवार्य हिस्सा है। यह उनके अस्तित्व के बने रहने के लिए जरूरी है। दुनिया के तमाम देश लोगों को मच्छरों के ख़तरों से आगाह करने के लिए बरसों से अभियान चला ते रहते हैं। लोगों को समझाया जाता है कि वो मच्छरदानी और बचाव के दूसरे तरीक़ों का इस्तेमाल करें ताकि मच्छर उन्हें न काटें।
विश्व मच्छर दिवस (20 अगस्त):
इसकी शुरुआत 20 अगस्त 1897 से हुई। लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के डॉ. रोनाल्ड रॉस ने इसी दिन खोज की थी कि मलेरिया के संवाहक मादा एनॉफिलीज मच्छर होते हैं। बाद में उनके प्रयास से मच्छर जनित बीमारियों की रोकथाम और उपचार के लिए दुनियाभर में अभियान चले और मलेरिया से हजारों लोगों की जान बचाई जा सकी। इसी योगदान के लिए उन्हें 1902 में चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।
मच्छरों से पूरी दुनिया परेशान है। दुनियाभर में सात अरब की आबादी प्रत्यक्ष रूप से भले ही आतंकवाद से पीड़ित न हो लेकिन मच्छरों से हर दिन हमारा सामना होता है। प्रकृति में पाए जाने वाले सबसे छोटे जंतुओं में शामिल ये 'मच्छर' दुनिया के सबसे जानलेवा शिकारी के रूप में बदनाम हैं। यानी "मनुष्य को जितना खतरा आतंकवाद से नहीं है, उससे कहीं ज्यादा मच्छरों से है।"
जाते-जाते बता दूँ कि मच्छरों के बाद दुनिया के सबसे ज्यादा जानलेवा जीव मनुष्य ही है। हम हर साल लगभग 5 लाख लोगों की जान ले लेते हैं।
FACEBOOK PAGE LINK
TELEGRAM CHANNEL LINK
OMmg 10 lac! couldn't imagine ever.. thanku for the information
ReplyDelete5 lakh ko insaan bhi marte h
DeleteThank you for the information....
ReplyDelete