साल 2008,
अगर मैं पूछूं कि उस साल क्या-क्या हुआ था?
तो निश्चित तौर पर कुछ लोगों का जवाब होगा की,
क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो ने अपनी बुरी सेहत का हवाला देते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था।
इसके अलावा बिहार में भीषण बाढ़ आई थी। उसेन बोल्ट ने 100 मीटर रेस में विश्व कीर्तिमान स्थापित किया था । बराक ओबामा अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति नियुक्त हुए थे। ये वो तमाम बड़ी घटनाएं हैं जो आमतौर पर लोगों को याद होंगी।
पर इन सबके अलावा भी एक चीज हुई थी। 1 दिन आया था जिस दिन को सदियों तक याद किया जाना चाहिए ,और उस दिन के पहले के वो तमाम दिन बहुत ही अनलकी थे। जिस दिन यह घटना हुई वह दिन था 25 दिसम्बर 2008 का। जिस दिन एक फिल्म रिलीज हुई थी। "द क्यूरियस केस ऑफ बेंजामिन बटन"।
इस फिल्म को देखने से पहले तक यह महज एक फिल्म थी। वो फिल्म जो बनती है, हिट होती है, पैसे कमाती है और फिर चंद पुरस्कारों के साथ डब्बे में बंद हो जाती है। पर जैसे जैसे मैं इस फिल्म में आगे बढ़ रहा था वैसे वैसे ये अपना रूप बदलती जा रही थी। पहले इस फिल्म ने एक मार्मिक घटना का रूप लिया , फिर यादों का , फिर प्रेम का, फिर सफर का, फिर संघर्ष का, फिर मिलने का , फिर जीवन का , फिर बिछड़ने का, और अंततः मृत्यु का। और ये कहना गलत नही होगा की ये मरना भी हैप्पी एंडिंग थी। पर मेरे ख्याल से ये मानव इतिहास की एकमात्र ऐसी फिल्म थी जिसका जेनर निर्धारित नहीं किया जा सकता है। यह फिल्म मेरे अंदर समा चुकी थी।
साथ ही साथ इस फिल्म से उस लेखक की( Eric Roth, robin swicord) रचनात्मकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। जिसने इसकी पटकथा लिखी थी। उस निर्देशक(david fincher) के हुनर का अंदाजा लगाया जा सकता है, जिसने इसके एक एक दृश्य पर अपना शत-प्रतिशत झोंक दिया।
फिल्म की कहानी एक आम इंसान के जीवन पर है जिसका जीवन कभी आम नहीं रहा। जन्म के अगले सेकंड से ही वह एक हीरो बन चुका था जिसका जन्म ही एक बूढ़े के रूप में हुआ था। और यह कहानी है उसी बूढ़े इंसान की , जो जिस वक्त बूढ़ा था उस वक्त उसकी अक्ल बचपन की थी। और जिस वक्त वह बच्चा बना उस वक्त उसकी अक्ल बूढ़ी हो चुकी थी। इस फिल्म को देखकर जीवन की कई सारी समस्याओं का हल निकलता है। यह फिल्म उस व्यक्ति के बारे में भी है जो अपने शरीर से लाचार होने के बावजूद अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर विश्वयुद्ध में जाता है , वहां से वापस आता है और एक परिवार बनाता है। साथ ही उसमें यह हिम्मत भी है कि वह अपने बसे बसाए परिवार को उसकी सलामती के लिए छोड़ देता है।
इस फिल्म में एक छोटा सा दृश्य है। वो दृश्य जो मैंने आज तक कभी किसी फिल्म में किसी भी परिवेश में नहीं देखा । दृश्य कुछ इस तरह है।
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