रेलवे मंत्रालय, नई दिल्ली से 15 अन्य शहरों के लिए ट्रेन सेवाओं को फिर से शुरू कर रहा है। ऐसे संकेत हैं कि अगले कुछ हफ्तों में सार्वजनिक परिवहन का विस्तार भी चरणबद्ध तरीके से हो जायेगा। यह ऐसे समय में हो रहा है जब कोरोना के मामलों की संख्या में वृद्धि जारी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि रेल, सड़क परिवहन और हवाई सेवाओं के फिर से शुरू होने से संक्रमणों की संख्या में आशातीत वृद्धि होगी।
फिर भी यदि सरकार यह कदम उठाने जा रही है तो इसका मतलब दो चीजों में से एक हो सकता है:
पहला, सरकार यह मान रही है कि लंबे समय तक लॉकडाउन रहने पर आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियां शिथिल हो जाएंगी।
और दूसरा, सरकार को यह भरोसा है कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था कोरोना के मामले से निपटने के लिए पर्याप्त है।
सरकार यदि यह रिस्क लेने के लिए तैयार है तो इसका यह अर्थ भी लगाया जा सकता है कि राज्य सरकारें भी कोरोना के मामलों से निपटने के लिए तैयार हैं।
भारत में कोरोना के मामलों की वृद्धि अन्य देशों की तुलना में धीमी रही है। मृत्यु दर अभी भी लगभग 3.2% है जो औसत वैश्विक मृत्यु दर 6.8% (संक्रमित लोगों के अनुपात के रूप में मौतों की संख्या) की तुलना में बहुत कम है।
यदि भारत आने वाले हफ्तों में इस गतिरोध को बनाए रख सकता है, तो भारत में स्थिति समान्य रहेगी। और यदि यह नहीं हो सकता है, और दैनिक मौतों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती है, तो लॉकडाउन पर फैसलों पर फिर से विचार करना होगा।
चिकित्सकीय सलाहकारों का मानना है कि भारतीयों की प्रतिरोधक क्षमता दूसरे देशों से बेहतर है, इसलिए छोटे मामलों में सभी को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है, वे आइसोलेशन में रहकर भी इससे निपट सकते हैं।
भारत अब मामलों की संख्या में विश्व में 12वें स्थान पर है, और जिस प्रकार मामले बढ़ रहे हैं, हम आने वाले कुछ दिनों में शीर्ष 10 में पहुंच सकते हैं। यह चिंताजनक है। हालांकि, कोरोना से मानव जीवन का नुकसान आंकने का पैमाना संक्रमण की संख्या नहीं, बल्कि उससे हुई मौतों की संख्या है। इस मामले में भारत विश्व के अन्य देशों से बेहतर स्थिति में है।
लॉक डाउन खुलने के बाद भारत में निश्चित रूप से संक्रमण की संख्या बढ़ेगी और मौतों की संख्या भी।
लॉकडाउन खुलने के बाद भारत को अपने संपर्क ट्रेसिंग ऐप, आरोग्य सेतु को अपनाने पर जोर देना होगा।
लेकिन ऐप की गोपनीयता और सुरक्षा पहलुओं के बारे में चिंताएं व्यक्त की गई हैं जिसके कारण कई लोग इसका उपयोग करने से डर रहे हैं। हालांकि, सरकार ने सोमवार को डेटा साझाकरण और एक्सेस प्रोटोकॉल जारी कर इसे सुरक्षित बताया।
एक और बड़ी चिंता की बात यह है कि भारत में अन्य देशों के मुकाबले कोविड-19 के परीक्षण बहुत कम हो रहे हैं। भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार यहां प्रति 10 लाख लोगों में महज 1,250 परीक्षण हुए हैं। कई राज्यों में इस औसत से भी कम परीक्षण हो रहे हैं। साथ ही कई जगह टेस्ट के परिणाम सही नहीं आ रहे हैं।
सोमवार को, स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना के लिए जिला-स्तरीय परीक्षण के लिए दिशानिर्देश जारी किए। साप्ताहिक रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज़ चेन परीक्षणों के साथ-साथ प्रत्येक जिले में उच्च-जोखिम और कम-जोखिम वाले दोनों समूहों के रक्त परीक्षण का निर्देश दिया गया है। यदि इसे लागू किया जाता है, तो यह सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति निर्माताओं को वास्तविक प्रसार और देश भर में कोविड-19 के प्रसार पर महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करेगा।
कड़क सवाल -
हालांकि भारत में अन्य देशों के मुकाबले संक्रमण में वृद्धि दर कम है और अन्य देशों के मुकाबले यहां कोरोना से मृत्यु की दर धीमी है। लेकिन क्या इन आंकड़ों के भरोसे भारत के 130 करोड़ लोगों को सड़कों पर उतरने की अनुमति दी जा सकती है ?
भारत ने समय रहते लॉकडाउन का फैसला लिया जिसकी तारीफ पूरी दुनिया में की गयी और शायद इसी वजह से यहाँ संक्रमण वृद्धि दर भी धीमी रही है। लेकिन क्या सार्वजनिक गतिविधियों की अनुमति देने से सब किये-कराए पर पानी नहीं फिर जाएगा...??
(- कड़क मिजाज , आलोक चटर्जी )
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