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Thursday, May 14, 2020

मजदूर जिनको अब गुलाम कहा जाना चाहिए?


भारत किसानों से ज्यादा मजदूरों का देश है। यहाँ की सरकारें और अमीरज़ादे उनको गुलाम से ज्यादा कुछ नहीं समझते। एक ऐसा गुलाम जिसकी अपनी कोई ज़िंदगी नहीं होती है, जिसका इज्जत और सम्मान से जीने का कोई हक़ नहीं होता। वो हमारे लिए काम करते हैं हम उनको पैसा देते हैं बस यही हमारा उनका रिश्ता है। उनकी स्थिति पहले से ऐसी थी लेकिन इस महामारी के समय उनकी असहाय अवस्था और भी दर्दनाक हो गई है।

राज्य सरकारें घर पहुँच रहे इन गुलामों के बंधनों को और कठोर बनाने में जुट गयी हैं। हकीकत में अभी तक न मिलने वाले अधिकारों को भी सरकारें ख़तम करने में लगी हुई हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकारों ने श्रमिक कानून को तीन वर्षों के लिए निरस्त कर दिया। गुजरात सरकार ने फरमान जारी किया कि इन गुलामों को ओवरटाइम करने का कोई पैसा नहीं दिया जाएगा वहीं राजस्थान सरकार ने कहा है कि ओवरटाइम का पैसा तो दिया जाएगा लेकिन उसकी लिमिट 24 घंटे है।

गुजरात में 1200 दिनों के लिए लेबर कानून से छूट प्रदान कर दी गई है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात सरकारों ने लेबर कानून में बदलाव कर काम करने के घंटों को 8 से 12 घंटे कर दिया है।

ये गुलाम जहाँ हफ्ते में 6 दिन 8-8 घंटे काम करते थे अब उनको 12-12 घंटे करना होगा। सप्ताह में उनको 72 घंटे काम करना होगा। सरकारें इसके पीछे तर्क दे रही हैं कि श्रमिक कानून में बदलाव करने से निवेश बढ़ेगा। दुनिया की कई कंपनियाँ 8 घंटे काम करने की पॉलिसी अपना चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय लेबर कन्वेंशंस भी 8 घंटे काम करने की वकालत करते हैं। मजेदार बात यह है कि हमारा भारत देश भी उन कन्वेंशंस का हिस्सा है।

हम उनके अधिकारों के बारे में अभी बात कर रहें हैं यह हमारा सबसे बड़ा दोहरा रवैया है। क्योंकि उनका शोषण तो आज से नहीं आदि से होता चला आ रहा है। हमारे आसपास हर रोज उनका शोषण किया जाता था लेकिन तब हमारे पास सहानुभूति व्यक्त करने का भी वक्त नहीं था।

उनके अधिकारों का इस तरह हनन किया जाना संवैधानिक और मानवाधिकार के उसूलों के खिलाफ है फिर भी कोई संगठन उनके लिए खड़ा होने वाला नहीं है। इस वक्त हम सभी उनके लिए मार्मिक लेख लिख रहे हैं(उनमें से मैं भी) पर ये सब कुछ दिनों के लिए है। एक दिन जब यह सब ठीक हो जायेगा तो वो फिर उसी हालात में घुट-घुटकर जी रहे होंगे। हम फिर अपने कामों में जुट जाएंगे। हमारे अंदर बैठा हुआ मजदूर प्रेम भी किसी कोने में जाकर दम तोड़ देगा। कौन उनके अधिकारों को बचाने के लिए लड़ेगा? वो इस महामारी के बाद फिर लौटेंगे और दोगुनी ताकत से फिर गुलामी में जुट जाएंगे।

अम्बरीश कुमार

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