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Saturday, June 13, 2020

सूचना का अधिकार : वह कानून, जो पंचायत से संसद तक, आपको सबकुछ जानने का हक़ देती है


एक परीक्षार्थी बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की परीक्षा देती है। परीक्षा बहुत अच्छी जाती है और वह खुश है कि वह प्रशासनिक सेवा में अपना योगदान देकर अपने राज्य की प्रगति में भागीदार बनेगी। रिजल्ट आता है, परीक्षार्थी फेल घोषित की जाती है, सपने टूटने लगते हैं। लेकिन परीक्षार्थी को अपने फेल होने पर आश्चर्य होता है, वह RTI दाखिल कर अपनी सभी उत्तर पुस्तिकाएं मांगती है, कॉपी उपलब्ध करा दी जाती है और कॉपी मिलान करने पर पता चला कि वह 'पास ' है, आयोग की गलती के कारण उसे फेल कर दिया गया था।
इस तरह RTI का उपयोग कर वह अपना अधिकार प्राप्त कर लेती है। यही नहीं , आयोग को माफ़ी मांगनी पड़ती है और गड़बड़ी करने वाले को निलंबित भी कर दिया जाता है।


क्या है वह अधिकार जिसके प्रयोग से उसने अपनी मेहनत को किसी और की गलती के कारण व्यर्थ नहीं होने दिया?
इस अधिकार का नाम है - "सूचना का अधिकार" जिसके तहत आप महज 12 रूपये खर्च कर देश के किसी भी सरकारी संस्था से सूचना प्राप्त कर सकते हैं।


इस  लेख में हम चर्चा करेंगे उस अधिकार की जो आपके लिए है-


लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आम आदमी ही देश का असली मालिक होता है। इसलिए मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का हक है कि जो सरकार उसकी सेवा के लिए बनाई गई है वह क्या कर रही है और कैसे कर रही है। इसके साथ ही हर नागरिक इस सरकार को चलाने के लिए टैक्स देता है, इसलिए भी नागरिकों को यह जानने का हक है कि उनका पैसा कहां खर्च किया जा रहा है। जनता के यह जानने का अधिकार ही सूचना का अधिकार है।

वैश्विक स्तर सूचना के अधिकार को पहचान तब मिली जब वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (Universal Declaration of Human Rights) को अपनाया गया। इसके माध्यम से सभी को मीडिया या किसी अन्य माध्यम से सूचना मांगने एवं प्राप्त करने का अधिकार दिया गया।

भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत करने और शासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से भारतीय संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 लागू किया।

कौन मांग सकता है सूचना ? कब तक मिलेगी जानकारी ?
इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक सूचना प्राप्त कर सकता है, यह सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है। यदि मांगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है।

सही सूचना न मिलने पर क्या करें ?
प्राप्त सूचना की विषयवस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त न होने आदि जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।

जनता किस प्रकार की सूचना मांग सकती है ?
किसी भी सरकारी प्राधिकरण जैसे ग्राम पंचायत, प्रखंड कार्यालय, विद्यालय, विश्वविद्यालय, पुलिस विभाग , राजस्व विभाग, राज्य या केंद्रीय मंत्रालय आदि से सूचना प्राप्त करने का अधिकार जनता के पास है।

इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, संसद व राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और निर्वाचन आयोग (Election Commission) जैसे संवैधानिक निकायों व उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है।

इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय, संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियमों द्वारा गठित संस्थान और निकाय शामिल हैं।



कैसी सूचनाएं नहीं मिलेगी ?
राष्ट्र की संप्रभुता, एकता-अखण्डता, सामरिक हितों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली सूचनाएँ नहीं दी जा सकती है।

क्या होगा इससे ?
पारदर्शिता आएगी , जवाबदेही तय होगी , नागरिक सशक्त बनेंगे , भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी ,
लोकतंत्र की प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी होगी।

RTI के द्वारा हुए बड़े खुलासे :
2G घोटाला :
इस घोटाले के कारण भारत सरकार को 1,76,645 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। यह बड़ा घोटाला तब सामने आया जब एक RTI कार्यकर्त्ता ने अधिनियम का उपयोग कर इसके खिलाफ एक RTI दायर की।

कॉमनवेल्थ गेम घोटाला :
एक गैर-लाभकारी संगठन द्वारा दायर एक RTI से पता चला था कि दिल्ली सरकार ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिये दलित समुदाय के कल्याण हेतु रखे गए फंड से 744 करोड़ रुपए निकाले थे। साथ ही RTI से यह भी सामने आया कि निकाले गए पैसों का प्रयोग जिन सुविधाओं पर किया गया वे सभी मात्र कागज़ों पर ही थीं।

इतने महत्वपूर्ण अधिकार का इतना कम प्रयोग क्यों ?
एक सर्वेक्षण से यह ज्ञात हुआ कि सूचना मांगने वाले सभी लोगों में से मात्र 15 प्रतिशत ही RTI अधिनियम के बारे में जानते हैं।
सर्वेक्षण से यह बात भी सामने आई थी कि अधिकतर लोगों को इस बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है।
इसका अर्थ यह हुआ कि RTI संबंधी जागरूकता को लेकर उसकी नोडल एजेंसी का कार्य काफी सीमित है।

कड़क विश्लेषण :
सूचना का अधिकार कानून निश्चित रूप से जन कल्याणकारी है लेकिन वास्तविकता से जुड़ने में इसके सामने कई चुनौतियाँ भी है। चूँकि यह कानून जनता की हितों को ध्यान मे रखकर बनाया गया है इसलिए यह आवश्यक है कि आम नागरिको को इसके बारे में सही जानकारी दी जाए।
जनता देश के मालिक हैं और अधिकारी जनता की  सेवा और सुविधा के लिए है न कि शासन के लिए। इसलिए तो वो नौकरी करते हैं , सरकार की नौकरी यानी आपकी नौकरी। 
देश के मालिकों का यह अधिकार है कि जिन सेवाओं पर असंतोष हो, उसकी सूचना तुरंत संबंधित सेवादाताओं से मांगें। 
(-कड़क मिजाज , आलोक चटर्जी )


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