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Saturday, February 3, 2018

आखिरी बजट भी हो गया लेकिन ‘अच्छे दिन कब आएंगे’

वित्त वर्ष 2018-19 का बजट सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने वाला एक कथित जादुई पिटारा निकला जिसमें सभी क्षेत्रों में शत-प्रतिशत उन्नति की गारंटी मिली। जहां तक सवाल मध्यम वर्गों का है तो आय ऋण में कोई बढ़ोतरी नहीं करने के अलावा सरकार उनके लिए कुछ नया नहीं लाई। इस बजट के माध्यम से सरकार 2019 की नहीं बल्कि 2022 का सपना दिखाती हुई नजर आई क्योंकि बजट पेशी के दौरान 2022 का ज़िक्र बहुत बार आया। “सर्वे भवंतु सुखिना सर्वे संतु निरामया” का भी ज़िक्र हुआ।

खेत के लिए दो हज़ार करोड़, खरीफ की फसल डेढ़ गुना ज़्यादा दाम पर खरीदने जैसी बातें सुनने को मिली। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इस बजट में महिलाओं को सीसीटीवी के अलावा कुछ भी नहीं मिला। सरकार हर खेत को पानी के लिए एक नई योजना लाई जिसके लिए 2600 करोड़ का अनुदान प्रदान किया गया। 124 एयरपोर्ट का निर्माण, 4000 किलोमीटर नई रेल लाइन,18000 किलोमीटर दोहोरी पटरी का निर्माण, 24 नए मेडिकल कॉलेज और हर एक तीसरी लोकसभा क्षेत्र में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज का भी प्रावधान इस बजट में था।

2003 के तत्कालीन वित्त मंत्री यसवंत सिंहा की “दादा-दादी” योजना मौजूदा वक्त में है भी या नहीं इसकी जानकारी किसी को नहीं, ठीक उसी प्रकार आयुष्मान भारत, गोवर्धन जैसी योजनाएं जमीन पर आएंगी या फिर लुभावने वस्तुओं की तरह शीशे में मढ़कर प्रदर्शनी के लिए रख दी जाऐगी।


वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत बजट में 250 करोड़ रुपए आय वाले व्यक्तियों पर मात्र 25% कर का ऐलान अचंभित करने वाला था ।सरकार ने जीएसटी और विमुद्रीकरण का उल्लेख बड़ी जोरों शोरों से किया और उनकी दुष्प्रभाव जो कि खुदरा व्यापारियों पर हुआ है को छुपाते हुए नजर आई। नमामि गंगे को 187 नई परियोजनाओं प्रदान की गई।

इस पिटारा में विद्यार्थी जो कि मोदी सरकार की रीड की हड्डी हैं (माननीय प्रधानमंत्री जी का कथन) उनके लिए कुछ नहीं निकला। देश को चलाने वाले भारत भाग्य विधाता यहां के गुरु यहां के शिक्षक के हाथों में कलम की जगह चूने से बनी हुई लेखनी थमा दी जिससे लिखी गई वाक्य को कभी भी सरकार अपनी मर्ज़ी के अनुसार मिटा सके। नौकरी के नाम पर एक सादा कागज़ जिसमें बीते समय के चुने हुए काबिल छात्रों के नाम जिनकी भर्तियां सरकार अपनी पॉलिटिकल एजेंडा के कारण रोकी हुई है यह देखने को मिली।

अभी सभी भारतीयों के मन में एक ही प्रश्न है कि अच्छे दिन कब आएंगे क्योंकि मोदी सरकार का यह अंतिम बजट था।


यदि निष्कर्ष की बात की जाए तो यह बजट आमतौर पर चुनावी भाषण की तरह लगा जिसमें नाम किसान का हुआ लेकिन काम उद्योगपतियों का।

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