कविता: शायद मैं लिखना भूल गया हूँ। - KADAK MIJAJI

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Monday, March 5, 2018

कविता: शायद मैं लिखना भूल गया हूँ।



शायद मैं लिखना भूल गया हूँ
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मैं लिखता था प्रेम के सागर में
तैरते प्रेम पत्रों के बारे में,
महबूब की ढलती बदलती करवटों के बारे में,
औरत की आजादी के बारे में ,
इंसान के इंसान हो जाने के बारे में,
धर्म के खिलाफ ,
इंसानियत के समर्थन में ,
मैं लिखता था गम में डूबे चांद के बारे में ,
पर धीरे-धीरे मैंने लिखना कम कर दिया ,
पर धीरे-धीरे मैंने लिखना कम कर दिया ,
क्योंकि,
न मुझे प्रेम मिला,
न महबूब की करवटे रुकी,
न औरतों को आजादी मिली,
न इंसान, इंसान बन पाया,
धर्म ने अंधा बना दिया सबको ,
इंसानियत मरती चली गई ,
चांद के धब्बे बढ़ते चले गए,
मैं बेचैन हो गया,
अस्पतालों में मरते बच्चों के क्रंदन सुनकर,
पेड़ो से लटकते किसानों को देखकर,
बेआबरू होती हुई बच्चियों को देखकर,
पर उम्मीद मैंने कायम रखी ,
भरोसा मैंने बरकरार रखा ,
कलम से उम्मीदें घटती चली गई ,
कविताओं की शक्तियां खोखली पड़ गई ,
और मैंने लिखना मुनासिब न समझा ,
मैंने लिखना छोड़ दिया ,
अब सब पुराना है ,
पुराने लेख हैं ,
पुरानी कविताएं हैं ,
जिन्हें मैं देखता हूं ,
और सोचता हूं,
कि शायद मैं लिखना भूल गया हूं,
शायद मैं लिखना भूल गया हूं।।

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