"सरकार फट्टू है, जनता फुद्दू है।"
इस वाक्य को बोल्ड और कैपिटल में इनवर्टेड कॉमा के बीच लिखकर रख लीजिए । क्योंकि देवनागरी में हम भेदभाव नहीं करते इसलिए स्मॉल और कैपिटल का झमेला नहीं है। फिर भी कलम को दो चार बार ज्यादा चलाकर इस वाक्य को बोल्ड कर लीजिए। क्योंकि हम उस दौर से गुजर रहे हैं जहां लोकतांत्रिक मशीनरी को लोकतांत्रिक तरीके से लोकतंत्र को ही खत्म करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
" सरकार फट्टू है"
फिर चाहे आप इसे केंद्र सरकार माने या राज्य सरकार ।यह दोनों ही सरकारें चाहती नहीं कि हम पढ़े ,हम सोचे ,हम सवाल करें । नोट कर लें कि यहां मैं शिक्षा की नहीं बल्कि नैतिक, व्यवहारिक एवं वैज्ञानिक शिक्षा की बात कर रहा हूं । शिक्षा एवं नैतिक, व्यवहारिक तथा वैज्ञानिक शिक्षा में वही फर्क है जो रटकर एग्जाम देने में एवं पढ़कर एग्जाम देने में है । सरकार(विश्व भर की सरकारें ) चाहती हैं कि हम एक रोबोट बन जाएं। प्री प्रोग्राम्ड रोबोट । जिसमें सरकार जो प्रोसेसर लगाना चाहे लगा ले हम करेंगे वही जो सरकार चाहती है ।
एक दिन सरकार आती है और कहती है कि फलाने फलाने नोट बंद हो गए। हम सवाल नहीं करते हैं। आसानी से मान जाते हैं ।
फिर एक दिन सरकार आती है और कहती है कि अपनी-अपनी फिंगर प्रिंट, रेटिना स्कैन, पता, व्यक्तिगत जानकारी इत्यादि फलानी एजेंसी को देकर आओ। नहीं तो तुम्हें गैस नहीं मिलेगी, बैंकिंग सुविधाएं नहीं मिलेंगी, रेल टिकट नहीं बुक कर पाओगे ,यहां तक कि अपने पोटीखाने को भी आधार से लिंक कराओ एजेंसी के पास। और हम ठहरे भोले-भाले आदमी ,अपनी चुनी सरकार पर भरोसा कर लेते हैं । बिना यह जाने कि फलानी एजेंसी कौन है । कौन कौन लोग बैठे हैं उस एजेंसी में जिन्हें हम अपनी निजी जानकारियां देने जा रहे हैं ।
और फिर एक दिन खबर आती है कि 32 करोड़ से अधिक लोगों की वित्तीय जानकारियां लीक हो गई हैं। जिनमें 10 करोड़ से अधिक आधार की जानकारियां भी शामिल हैं ।इसके बाद बड़ी-बड़ी हैडलाइन बनती है, प्राइम टाइम शो किए जाते हैं। एक्सपर्ट डिबेट होती है। फिर तैमूर के दांत निकल आते हैं और सारी खबरें दब जाती है । लोगों को घंटा फर्क नहीं पड़ता।
आपसे सवाल किया जाए कि आप सदी का महानायक किसे मानते हैं? निश्चित तौर पर 70-80% लोगों की राय अमिताभ बच्चन होंगे। पर मेरे हिसाब से एडवर्ड स्नोडेन सदी का महानायक है। जिसने दुनिया को बताया कि डाटा वर्तमान दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति है। जिसके पास जितना अधिक नागरिक डाटा है वह उतना अधिक शक्तिशाली देश है । एडवर्ड स्नोडेन के साथ ही कुछ और लोग भी हैं जिन्होंने लोगों की निजता के संबंध में चिंताएं व्यक्त करते हुए कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं ।अभी कुछ दिनों पहले द ट्रिब्यून की पत्रकार रचना खायरा पर यूआईडीएआई अर्थात आधार की संस्था ने FIR दर्ज कराया था ।रचना का दोष बस इतना था कि उन्होंने आधार में सेंध लगाने के तरीके बताए थे, साथ ही बताया था कि ₹500 में कई सारी संस्थाएं आधार की जानकारियां उपलब्ध करा देती हैं । पर सरकारें आखिर इसतरह के खुलासे करने वालों से इतना डरती क्यों हैं। स्नोडेन तो आज तक दूसरे देश की राजनयिक शरण में हैं। उनके देश usa में कई तरह के मुक़दमे चल रहे हैं उनपर।
बहरहाल यह दिखावे का लोकतंत्र भारत जैसे देश में काफी सफल है। जहाँ जनता यह तय करती है कि उसका शोषण कौन सी पार्टी करेगी। फिर भी आपको आपकी निजता बचाने के लिए खुद ही जिम्मेदार होना पड़ेगा। वरना आपकी मूकदर्शिता के अलावा कुछ भी आपका नही रहेगा। न आपका धर्म , न आपकी जाति, न आपका मत और न आपकी भक्ति।
21वी सदी मुबारक हो।
एडवांस में अप्रैल फूल मुबारक हो।
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