शोक सभाएं मुझे बचपन से आकर्षित करती रही हैं। एक बार को किसी के सुख में शरीक न होऊं लेकिन शोक सभा में जरूर जाता हूं। शोक और दुख दोनों एकसाथ प्रकट हो जाते हैं। वरना, अलग से दुख प्रकट करना मुझे बड़ा अटपटा-सा लगता है। अक्सर भूल जाता हूं कि किस स्थिति में किस प्रकार का दुख प्रकट करूं। दुनिया में इतनी तरह के तो दुख हैं कि हर दुख कभी किसी दुख से मेल ही नहीं खाता।
दुख के मनोविज्ञान को समझना मेरे बस की बात भी नहीं। सुना है, इसके लिए भी एक खास ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है।
एक जमाने में शोक सभाएं थोड़ा मातम टाइप हुआ करती थीं। शामिल लोगों के चेहरे मुरझाए हुए से दिखते थे। शोक भी इतना विकट तरीके से व्यक्त किया जाता था कि गुजरने वाले की आत्मा भी कलप जाती होगी। काले कपड़ों में रूदलियां भी गाई जाती थीं।
लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बदला शोक व्यक्त करने के ढंग और मायने दोनों बदल गए। अब की शोक सभाएं शोक सभाएं कम इवेंट मैनजमेंट अधिक लगती हैं। डिजिटल समय में शोक भी डिजाइनर हो चला है।
अभी हाल मुझे एक सज्जन की शोक सभा में शामिल होने का चांस मिला। सज्जन अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा जी कर दुनिया से रुखसत हुए थे। सो, उनकी शोक सभा में खास शोक नहीं था। हर चेहरे पर चार्मनेस छाई हुई थी। खासकर, मौजूद महिलाओं का ड्रेसिंग सेंस तो कमाल का था। उन पर व्हाइट ड्रेस खूब फब रही थी। ज्यादातर चेहरे 'लाइट मेकअप' में भी खासी लाइट मार रहे थे। शोक-संतप्त परिवार के सदस्य भी, लग रहा था, शोक सभा में शामिल होने की अच्छी ट्रेनिंग लेकर आए थे!
बारी-बारी से सबके मोबाइल बज रहे थे। सब एक-दूसरे को गैलरी में मौजूद 'स्टफ' दिखाने में मशगूल थे। व्हाट्सएप्प पर बातचीत का आदान-प्रदान हो रहा था। तो कुछ बीच-बीच में अपना फेसबुक और ट्विटर के स्टेटस भी अपडेट कर रहे थे। सेल्फी के शौकीनों ने शोक सभा को भी अपने शौक के रंग में रंग लिया था। लगे हाथ, एकाध के साथ सेल्फी मैंने भी ले ली। बहती गंगा में हाथ धोने से कभी चूकना नहीं चाहिए।
अच्छा, सेलिब्रिटियों की शोक सभाएं तो और भी गजब होती हैं। शायद ही कोई ऐसा चेहरे नजर आता हो जिसने आंखों पर काला चश्मा न चढ़ाया हो। कुछ चश्मे तो इतने बड़े होते हैं कि चार-पांच आंखों को ढक लें। शोक सभा में काला चश्मा पहनने के पीछे अपने आंसूओं को जग-जाहिर न करने की तरकीब रहती हो शायद।
सफेद कुर्ते-पायजामे और साड़ी व सलवार-सूट को देखकर तो ऐसा जान पड़ता है मानो अभी कुछ देर पहले ही ड्राई-क्लीन करवाए हों। कुछ हीरोइनें तो शोक सभा में भी 'न्यूड मेकअप' किए होती हैं। आखिर सेलिब्रिटी हैं, कुछ तो अलग दिखना चाहिए न।
पर शोक सभा का आकर्षण होता गजब है। मेरी तो दिली-तमन्ना है कि मेरी शोक सभा पूरी तरह ग्लैमरस और अट्रैक्टिव हो। ताकि शामिल हुए लोग मेरी शोक सभा फुल्ली एन्जॉय कर सकें।
दुख के मनोविज्ञान को समझना मेरे बस की बात भी नहीं। सुना है, इसके लिए भी एक खास ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है।
एक जमाने में शोक सभाएं थोड़ा मातम टाइप हुआ करती थीं। शामिल लोगों के चेहरे मुरझाए हुए से दिखते थे। शोक भी इतना विकट तरीके से व्यक्त किया जाता था कि गुजरने वाले की आत्मा भी कलप जाती होगी। काले कपड़ों में रूदलियां भी गाई जाती थीं।
लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बदला शोक व्यक्त करने के ढंग और मायने दोनों बदल गए। अब की शोक सभाएं शोक सभाएं कम इवेंट मैनजमेंट अधिक लगती हैं। डिजिटल समय में शोक भी डिजाइनर हो चला है।
अभी हाल मुझे एक सज्जन की शोक सभा में शामिल होने का चांस मिला। सज्जन अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा जी कर दुनिया से रुखसत हुए थे। सो, उनकी शोक सभा में खास शोक नहीं था। हर चेहरे पर चार्मनेस छाई हुई थी। खासकर, मौजूद महिलाओं का ड्रेसिंग सेंस तो कमाल का था। उन पर व्हाइट ड्रेस खूब फब रही थी। ज्यादातर चेहरे 'लाइट मेकअप' में भी खासी लाइट मार रहे थे। शोक-संतप्त परिवार के सदस्य भी, लग रहा था, शोक सभा में शामिल होने की अच्छी ट्रेनिंग लेकर आए थे!
बारी-बारी से सबके मोबाइल बज रहे थे। सब एक-दूसरे को गैलरी में मौजूद 'स्टफ' दिखाने में मशगूल थे। व्हाट्सएप्प पर बातचीत का आदान-प्रदान हो रहा था। तो कुछ बीच-बीच में अपना फेसबुक और ट्विटर के स्टेटस भी अपडेट कर रहे थे। सेल्फी के शौकीनों ने शोक सभा को भी अपने शौक के रंग में रंग लिया था। लगे हाथ, एकाध के साथ सेल्फी मैंने भी ले ली। बहती गंगा में हाथ धोने से कभी चूकना नहीं चाहिए।
अच्छा, सेलिब्रिटियों की शोक सभाएं तो और भी गजब होती हैं। शायद ही कोई ऐसा चेहरे नजर आता हो जिसने आंखों पर काला चश्मा न चढ़ाया हो। कुछ चश्मे तो इतने बड़े होते हैं कि चार-पांच आंखों को ढक लें। शोक सभा में काला चश्मा पहनने के पीछे अपने आंसूओं को जग-जाहिर न करने की तरकीब रहती हो शायद।
सफेद कुर्ते-पायजामे और साड़ी व सलवार-सूट को देखकर तो ऐसा जान पड़ता है मानो अभी कुछ देर पहले ही ड्राई-क्लीन करवाए हों। कुछ हीरोइनें तो शोक सभा में भी 'न्यूड मेकअप' किए होती हैं। आखिर सेलिब्रिटी हैं, कुछ तो अलग दिखना चाहिए न।
पर शोक सभा का आकर्षण होता गजब है। मेरी तो दिली-तमन्ना है कि मेरी शोक सभा पूरी तरह ग्लैमरस और अट्रैक्टिव हो। ताकि शामिल हुए लोग मेरी शोक सभा फुल्ली एन्जॉय कर सकें।
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