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Saturday, May 5, 2018

संयुक्त परिवार


15 सदस्यों का परिवार हैं मेरा..जी हां संयुक्त परिवार। जिसमे दादा, दादी, पापा, मम्मी, चाचा, चाची, फुआ और हम सभी भाई बहन। खाना एक ही चूल्हे पे बनता हैं और एक ही साथ लगभग सभी खाते भी हैं। बच्चों की शादी के बाद अक्सर परिवार टूटने लगते हैं और जमीनों के साथ साथ प्यार का, ख़ुशी का, एक दुसरे के दर्द व एहसास का भी बंटवारा हो जाता हैं।

मेरी दादी वृद्ध हो चुकी हैं और बीमार भी रहती हैं। वह मुझसे बस एक ही बात कहती रहती हैं कि जब तक मैं जिन्दा हूँ..तब तक परिवार का बंटवारा नहीं होने देना। परिवार में बहुत उतार-चढ़ाव आये, सदस्यों के बीच तनातनी भी बहुत हुयी। कभी ननद-भाभी, कभी जेठानी-देवरानी, कभी सांस-बहुँ (यहाँ सिर्फ मैं औरतों के संबंध के बारे में ही ज़िक्र कर रहा हूँ क्योंकि परिवार के टूटने का कारण सिर्फ औरतें ही होती हैं), लेकिन कहते हैं न जहाँ नफरत होती हैं, गुस्सा होता हैं..प्यार भी वही होता हैं। सभी की प्रतिबद्धता ने परिवार को हमेशा जोड़े रखा.. और मैंने कई बार ही इसमें अहम भूमिका निभाई।

आजकल जब आसपास देखता हूँ तो लगता हैं जैसे संयुक्त परिवार की प्रथा खत्म सी हो गयी हो। रिश्तों से ज्यादा क़द्र जमीन और पैसो की हो गयी हैं। अपनों के प्रति वैसी संवेदनाएं, वैसी हमदर्दी अब देखने को नहीं मिलती। वजह पता नही, लेकिन अब समाज में संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार लेने लगा हैं। एकल परिवार में न ही दादा-दादी हैं और न ही चचेरे भाई-बहिन। चाचा-चाची या ताऊ-ताई किसे कहते हैं, बच्चे ये नहीं जानते। दादा-दादी की देख-रेख से भी बच्चे वंचित हैं। इसी तरह एकल परिवार ने जेठानी-देवरानी और ननद-भाभी या देवर-भाभी के रिश्तों को भी मिटाने का काम किया है। बच्चों की देख-रेख, परवरिश ठीक से नहीं हो पाती। बच्चों में संस्कार और मानवीय मूल्यों की कमी साफ़ नज़र आती हैं। बच्चे समूह में सीखते हैं। अपने संगी-साथियों से ज्यादा अपने घर में हम उम्र और बड़े बच्चों से बच्चे ज्यादा सीखते हैं।

प्रेम, अपनापन, सहयोग, सहायता, साझेदारी और सामूहिकता ही तो संयुक्त परिवार का प्राण है। और अगर अपने साथ हो तो बड़े से बड़े विपत्तियों का भी मुकाबला किया जा सकता हैं। छोटी सी ख़ुशी को भी बड़े से जश्न में तब्दील किया जा सकता हैं। हर कोई चाहता है कि उनका परिवार सुखी और खुशहाल हो। कहा भी गया है कि मानव न तो देवता है न ही दानव। मानवता भी यही कहती है कि अपने लिए न जीकर हम सबके लिए जियें। आप सभी से हाथ जोड़ कर निवेदन हैं कि संयुक्त परिवार वाली भारतीय परंपरा को खत्म न होने दे। मिलकर रहने में जो सुख है वो अकेले रहने में कभी हो ही नहीं सकता। आप क्या सोचते हैं? बतलाइएगा जरूर। मैं प्रतीक्षा में रहूंगा।

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