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Wednesday, May 16, 2018

कर्नाटक चुनाव, बनारस की हत्या, कैम्ब्रिज एनालिटिका तथा पार्टियों के अवैध चंदो पर मंथन।


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 कल 12:00 बजे तक एक्साइटमेंट था, कौन जीतेगा कर्नाटक। सीटों का उतार-चढ़ाव , अच्छा लग रहा था। कभी BJP के दफ्तर में तो कभी कांग्रेस के दफ्तर में बँट रही मिठाइयों के रुकते चलते दौर को देखकर भी मजा आ रहा था। पर 1 बजते-बजते परिणाम त्रिशंकु विधानसभा की ओर जाने लगे। साथ ही साथ मेरे दिमाग में गोवा , मणिपुर , अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों के नाम भी आने लगे । 2 बजते-बजते बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अपने रंग दिखाने शुरू किए । सत्ता की लोलुपता ने देश के दो सबसे बड़े दलों को देश का दीमक बना दिया है। वो दीमक जो जनमत एवं लोकतंत्र को चाट रहा है।

                  उसके बाद मैंने TV नहीं देखा । फिर रात को खाते वक्त जब TV खोला तो बनारस में गिरे निर्माणाधीन फ्लाईओवर की खबर देख, दिमाग में जो पहली चीज आई  वह थी 'बुआ'। पता किया तो मालूम पड़ा की बुआ और उनका परिवार सुरक्षित है । खबर को 10 मिनट तक देखने के बाद मैंने फैसला कर लिया की यह हादसा नहीं हत्या है । वो हत्या जिसकी जांच रिपोर्ट कभी नहीं आएगी । वो हत्या जिसे प्राकृतिक दुर्घटना बोल कर दबा दिया जायेगा। वो घटना जिस पर मुआवजे का लेप लगा दिया जाएगा ।

                        क्या सच में इतना मुश्किल होता है इन घटनाओं की जांच करना? क्या टेंडर पास करने के लिए मंत्री जी घूस लेते हैं यह आपको नहीं पता ? क्या लोकल सुरक्षा के नाम पर विधायक रंगदारी लेते हैं यह आपको नहीं पता ? क्या घुस के पैसों को मैनेज करने के लिए ठेकेदार द्वारा घटिया माल लगाया जाता है, ये आपको नहीं पता?

आप को सब पता है। पर आप ने आंखों पर पट्टी बांधी हुई है । लाल पट्टी , भगवा पट्टी ,हरी पट्टी ,नीली पट्टी । इन रंगीन पट्टियों के उस पार दुनिया आपको उसी रंग की दिखती है । यह आपको सुखद लगता है । बीजेपी समर्थकों को गोवा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश में सरकार बन जाना अच्छा लगता है। गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा अच्छी लगती है। कांग्रेसियों को कपिल सिब्बल द्वारा किया गया तीन तलाक का विरोध अच्छा लगता है। कर्नाटक में सरकार बनाने की प्रक्रिया अच्छी लगती है। भ्रष्टतम पार्टी का तमगा अच्छा लगता है। और तो और सत्ता के नशे में चूर तृणमूलीयों को ममता बनर्जी के हिंसक रूप में दुर्गा अवतार नजर आता है । चुनावी हिंसा में उन्हें अपनी जीत नजर आती है ।

              कभी इन सब पर हंसी आती है, कभी देखकर रोने को दिल करता है । और फिर तसल्ली हो जाती है की यही तो लोकतंत्र का रूप है। जहां जनता खुद अपने ऊपर शोषण करने वालों को चुनती है। पर सच मानिए आप भोले हैं, बहुत भोले हैं। इतने भोले कि आप को खुद नहीं पता कि आप क्या कर रहे हैं। आप हॉलीडे के स्लीपर सेल बन चुके हैं। जिन्हें ऊपर बैठे लोग कंट्रोल करते हैं। आपको ऐसा बनाने में एक बहुत बड़ी राशि लगी हुई है । एक पूरी मशीनरी लगी हुई है आपकी राय को बदलने के लिए ।आपके मन मस्तिष्क को काबू करने के लिए ।

                लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एवं बीजेपी द्वारा कैंब्रिज एनालिटिका के व्यापक उपयोग तथा सरकारी पैसे एवं संस्थानों के दुरुपयोग द्वारा फैसलों को अपने पक्ष में किया गया । आरटीआई द्वारा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार वर्तमान सरकार ने 4343 करोड़ रुपए अपने प्रचार प्रसार पर खर्च किए हैं। गणितीय भाषा में यह राशि अरबों-खरबों की हो जाती है। आंकड़े इतने आश्चर्यजनक हैं कि कई बार तो यकीन ही नहीं होता ।

*भाजपा सरकार ने सत्ता संभालने के 9 महीने के भीतर ही विज्ञापन और प्रचार पर 953.54 करोड़ रुपए खर्च किए ।
*कुल 4343 करोड़ में से 1656 करो रुपए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर।
* 1698 करोड़ रुपए प्रिंट मीडिया पर।
* 399 करोड़ रुपए होर्डिंग पोस्टर एवं बुकलेट पर।
* 8.50 करोड़ रुपए रेडियो पर मन की बात में खर्च की गई ।
ऊपर के सभी खर्च सरकारी मद में से खर्च किए गए । अगर एक राजनीतिक दल के रूप में BJP की बात की जाए तो साल 2016 में भाजपा ने 700 करोड़ रुपए खर्च किए। जबकि उसी साल भाजपा को चंदे के रुप में 1034 करोड़ रुपए मिले थे। क्या आप यकीन कर सकते हैं कि किसी दल को चंदे के रुप में इतने रुपए मिले। और ऐसा नहीं है कि केवल bjp को इस प्रकार के चंदे मिले हैं । यह एक ट्रेंड बना हुआ है जिसमें सत्ताधारी दल को व्यापक रूप में चंदे मिलते हैं।

                 साल 2011 में जब कांग्रेस सत्ता में थी उस वक्त उसे 1493 करोड़ रुपए चंदे में मिले थे। तब वह उस वक्त की सबसे अमीर पार्टी थी। तो आखिर वह कौन लोग हैं जो लगातार सत्ता में निवेश करते रहते हैं? तथा भविष्य में निवेश के फायदे सोचने में लगे हुए।

 आप सोच रहे होंगे कि मैं एक मुद्दे पर कभी बात ही नहीं कर रहा। मैं मुद्दों को भटका रहा हूं। पर ऐसा नहीं है यह सभी मुद्दे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। वो लोग जो इन दलों को इतनी बड़ी राशि चंदे के रुप में देते हैं निश्चित रूप से उन लोगों की कुछ ना कुछ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं होंगे, जो वो अमुक दल के सत्ता में आने के बाद पूरे करवाते होंगे।

सोचिए, इन विषयों पर विचार करना आवश्यक है। आप की राजनीतिक भक्ति देश को काले भविष्य की ओर धकेलेगी। इसलिए नागरिक बनिए भक्त नहीं। स्वतंत्र रहिए तथा तुलनात्मक विचार कीजिए।

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