निंदा और मुआवजा.. ये किसी भी सरकार के दो प्रमुख हथियार हैं। असल में ये हथियार नही ब्रह्मास्त्र हैं। कोई भी घटना घटे पहले आप निंदा कर दीजिए और फिर हमसे लूटे हुए पैसों से ही कुछ पैसे मुआवजे के तौर पर हमें दे दीजिए। हर सरकार का ये फंडा हैं पहले निंदा, फिर मुआवजा। कहाँ ट्रेन हादसा हुआ, कहाँ पुल गिरा, कितने लोग मरे.. उन्हें घण्टा फर्क नही पड़ता। अगर फर्क पड़ता तो सालों दर साल दुर्घटनाएं, वारदात बढ़ते नही जाते। अगर फर्क पड़ता तो निंदा और मुआवजा की जगह ठोस कार्यवाही होती। यहाँ ठोस कार्यवाही का मतलब ये नही की आपने फलना अधिकारी को ससपेंड कर दिया, चिलना अधिकारी का ट्रांसफर कर दिया। वैसी ठोस कार्यवाही, की ये चीज़ें आगे देखने को बिलकुल न मिले।
बनारस में पुल का गिरना पूरी तरह से सिस्टम की नाकामी को दर्शाता हैं। उस सिस्टम में न जाने कितने ही भ्रष्ट नेता, आईएएस, इंजीनियर और मंत्री मौजूद रहते हैं..सिर्फ ₹100 में प्रतिदिन काम करनेवाले मजदूर को छोड़कर। और हाँ, पुल का गिरना..इसे आप छोटी घटना या अंजाने में घटी घटना न माने। यह पूरी तरह से लापरवाही को दर्शाता हैं। वैसी लापरवाही जिसकी कीमत फुटपाथ पे रहने वाले गरीबो को, आम आदमियों को एवं हर उस मध्यमवर्गीय व्यक्तियों को चुकानी पड़ती हैं...जो इन्ही पुल के निर्माण के लिए हर रोज..बिना किसी रोक-टोक के टैक्स भरता रहता हैं।
यहाँ मैं सरकार और सिस्टम को दोष इसलिए दूंगा..क्योंकि जब कोई पुल का सफल निर्माण होता हैं और उनपर सरपट गाड़ियां दौड़ने लगती हैं..तो उसका क्रेडिट सरकार किसी अधिकारी या मजदूर को नही देता। हमारी सरकार ने इतने पुल बनायें, इतनी सड़के बनायीं, इतने बांध बनाये..हर जगह सरकार/मंत्री बस खुद ही क्रेडिट लेता चला जाता हैं। तो जब सफलता में क्रेडिट आपके मंत्री जी लेते हैं, आपकी सरकार लेती हैं..तो फिर असफलता में जिम्मेदार सिर्फ कुछ अधिकारी कैसे?
बंद कर दो यार ये ढोंग..निंदा और मुआवजा का। ये मुआवजा तो बस तुम्हारा छोटा सा इन्वेस्टमेंट हैं, ताकि आगे ऐसे ही कितने पुलों से भर-भर के तुम कमा सको। और पुल यूँ ही गिरे, लोग यूँ ही मरे और तुम मुआवजा और निंदा का चक्र चलाते रहो, बस चलाते रहो।
और जो लोग सही सलामत हैं और इनसब चीज़ों में भी सरकार और पार्टी का बचाव करते नजर आते हैं, उनसे कहना चाहूँगा। हमारी सरकार ने ये किया, हमारी सरकार ने वो किया जो सुनाते रहते हो..ध्यान इसपर भी दो, की हमारी सरकार में इतने ट्रेन हादसे हुए, इतने पुल गिरे, अस्पताल में इतने बच्चे मरे। अगर खूबियां देख सकते हो तो कमजोरियां भी देखने की कोशिश करो। वरना तुम कोई सगे-संबंधी थोड़ी न हो उनके..आखिर तुम भी तो कभी ट्रेन से सफर करते हो, तुम भी तो कभी पुल के नीचे से गुजरते हो।
(पोस्ट को किसी ख़ास पार्टी या किसी एक सरकार का चश्मा लगाकर न देखे)
बिलकुल सत्य लिखे हैं ।
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