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Sunday, June 10, 2018

नेता : आखिर क्या हैं इस शब्द के मायने?


एक पत्रिका पढ़ने के दौरान पता चला, की अंग्रेज़ो ने 250 सालों में अनुमानतः भारत का "1 लाख करोड़" रूपये लूटा। वही दूसरी तरफ आज़ादी के मात्र 60 सालों में इस देश के नेताओं ने भारत का 70 लाख करोड़ रूपये लूटा। अब सवाल यह की अंग्रेज़ अच्छे या हमारे देश के "नेता" अच्छे। गौर कीजियेगा यहाँ किसी सरकार की बात नहीं कर रहा..क्योंकि सरकार हम ही चुनते हैं। और वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार सरकार में शामिल ज्यादातर व्यक्तियों को नेता नही कह सकते, क्योंकि नेता शब्द का मतलब बहुत बड़ा होता हैं। आइये पहले थोड़ा क्लियर करते हैं कि "नेता" होता कौन हैं?


नेता शब्द संस्कृति से आया है। "नेता" वह जो नयन व्यापार करे यानी किसी चिन्हित लक्ष्य तक ले जाने का काम करे। कोई भी शख्स तब तक खुद को नेता नहीं कह सकता, जब तक कि उसके जीवन में कोई ऐसा लक्ष्य न हो जो उससे भी बड़ा हो। नेता की उपस्थिति इसलिए जरूरी हो जाती है, क्योंकि लोग सामूहिक रूप से जहां पहुंचना चाहते हैं, वहां पहुंच नहीं पा रहे। वे पहुंचना तो चाह रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि वहां तक पहुंचा कैसे जाए। इसीलिए एक नेता जरूरी हो जाता है।
व्यक्ति नेता तब बनता है, जब वह अपनी व्यक्तिगत सीमाओं से आगे बढक़र सोचने लगता है, महसूस करने लगता है, और कार्य करने लगता है।

पिछले दो दशकों में सियासतदानों के रसूख ने पूरे देश की सियासत का अंदाज ही बदल कर रख दिया है। नेता बनने का ख्वाब अपनी आंखों में संजोए बाहुबलियों ने जैसे ही सियासत में प्रवेश किया, सियासत दागदार होती गई और आज तो ये दूध में पानी की तरह घुलमिल गई है, जिसे अलग करना ही असंभव नजर आ रहा है। अब तो कई ऐसे सफेदपोश हैं जो खुद को बाहुबली कहलाने पर फक्र महसूस करते हैं। जिन क्षेत्रों में ये चुनाव प्रचार के दौरान जनसभाएं आयोजित करते हैं, वहां क्षेत्र के दौरे के दौरान अपनी लक्जरी गाड़ियों का प्रदर्शन करना इनके लिए अपना रसूख दिखाना और रुतबा प्रदर्शन करने का अहम जरिया है।


ऐसा कहना बिल्कुल उचित नहीं है कि नेता शुरू से ही ऐसे होते थे। समय बदलने के साथ ही साथ नेता शब्द की परिभाषा भी बदलती रही। दो दशक से भी पहले की बात करें तो नेता शब्द का पूर्ण अर्थ जननायक हुआ करता था, वह व्यक्ति जिसके क्षेत्र में निकलते ही एक विशाल जनसमूह उसके पीछे चलने लगता था और जब वह जननायक हुंकार भरता था तो लोगों की गर्जना से आसमान भी हिल जाता था। उस समय के जननायक अपने बारे में सोचने के बजाय जनमानस के हित का ही कार्य किया करते थे। वे गाड़ियों से चलने के बजाए पैदल चलना ही पसंद किया करते थे और वह भी सिर्फ इसलिए कि आमजन उनसे कदमताल कर चल सकें। महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण, लाल बहादुर शास्त्री, बी.आर.अंबेडकर, राम मनोहर लोहिया आदि कुछ ऐसे नाम आज भी उदाहरण के तौर पर लिए जा सकते हैं।


लेकिन मुझे लगता है कि आज हमारे देश में स्थिति उल्टी है। यहां अगर आप काम को होने से रोक सकते हैं तो आप नेता बन सकते हैं। अगर आप काम-काज ठप्प करा सकते हैं, शहर बंद कर सकते हैं, सडक़ रोको, रेल रोको जैसे आंदोलन सफल करा सकते हैं, तो इसका मतलब है कि आप नेता बन सकते हैं। एक ही रंग की बड़ी-बड़ी व महंगी लक्जरी गाड़ियों का काफिला, गाड़ियों के शीशे पर लगी काली फिल्म, सभी गाड़ियों की नंबर प्लेटों पर लिखे एक समान अंक व गाड़ियों के अंदर सुरक्षाकर्मी के रूप में बैठे राइफल व बंदूकधारी और इन सबके अगुआ सफेद रंग का वस्त्र पहने हुए नेताजी और इनके साथ जुड़ी हुई मुकदमों की एक लंबी फेहरिस्त।

आज देश में नेता कोई नही हैं.. सब सरगना है,
नेता तो कई दशकों से आए ही नही इस देश में।

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