'आम' आदमी की भले कोई औकात न हो लेकिन फलों की दुनिया में 'आम' रॉयल्टी से सम्बन्ध रखता है। गर्मी का सीजन और आम। ठेला पर लेके पहुँचता था सब...दूधिया मालदह...एक किलो में दो से तीन आम।
'कैसे है जी?'
'अस्सी रुपये किलो'
'अस्सी रुपये किलो? और थोड़ा बढ़ा के बोलते...डेढ़ सौ रुपये किलो'
'हम तो सबसे कम लगा के बोले आपको...बाजार में तो सौ रुपये से नीचे नहीं मिलेगा...देखिये न...एकदम मिश्री जैसा स्वाद है.'
'पचास रुपये लगाओ...दो किलो लेंगे'
'तीन किलो लीजियेगा तो साठ रुपये लगा देंगे'
'तौलो'
फिर सुबह के नाश्ता के प्लेट में चार फांक और एक अंठि। भाईलोग में लड़ाई की उसका आम का ओवरआल वॉल्यूम हमारे आम से ज्यादा है। आलू सहजन या आलू बैगन जैसा सब्ज़ी, जिसको देख के हम नाक भौं सिकोड़ लेते थे, आम के साथ सब निगला गया।
मम्मी लोग का मूड बना तो आम का मैंगो शेक। 'अमृत' का स्वाद किसी को नहीं पता, मगर हमारा ये मानना है की मैंगो शेक से ज्यादा दूर नहीं होगा। आम को चूड़ा में मिला के खाइये अगर दही नहीं जमा तो...आम को दूध में मिला के फ्रीजर में रख दीजिये...मानगो आइस क्रीम।
हमारे गाँव के पुराने वाले घर में दादाजी लगवाए थे दूधिया मालदह का पेड़। हर दुसरे साल पेड़ आम के बोझ से झुक जाता। दादी बाहर बैठ के आम अघोरती दिन भर।
'कौन है जी? भागता है की नहीं'
जो कच्चा टिकोला झडाया, उसका खट्ट-मीठी..नहीं तो कच्चा टिकोला, नमक के साथ...और अगले चार दिन तक दांत खट्टा।
आम पका तो पेड़ पर चढ़िये और चींटिया सब से कटवाते हुए आम की फसल काटिये। नीचे छोटा भाई लोग कैच करने लिए..फिर क्या सुबह, शाम, रात आम-आम-आम...जब तक सब बच्चा के मुँह पर फुंसी का पैटर्न न बन जाए आम के गर्मी से...तबतक बस आम आम आम।
मेरा हमेशा से पसंदीदा फल रहा है आम ।।
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