जब मैं पैदा हुआ तो सामान्य बच्चे की अपेक्षा मेरा वजन बहुत कम था और डॉक्टर ने साफ़ साफ़ कह दिया कि यह बच्चा जीवित नहीं रह पायेगा..लेकिन मेरी इस तरह से देखभाल की गयी, कि डॉक्टर की बात गलत साबित हुई।
फिर जब मैं 5 साल का था तो मेरे एक मामा दरोगा था। वह मेरे साथ अपनी पिस्तौल के साथ खेल रहे थे। उन्हें लगा पिस्तौल में शायद गोली नही हैं, उन्होंने मेरी तरफ पिस्तौल पॉइंट कर के ट्रिगर दबा दिया..गोली मेरे कान के पास से गुजर गयी।
फिर जब मैं 12 साल का हुआ तो एक बार गाँव के पोखर में नहाने चला गया। नहा मैं किनारे पर ही रहा था, लेकिन मेरा पैर ऐसे फिसला की मैं बीच पानी में हाथ पाँव मारने लगा। मेरे एक भाई ने वहाँ मेरी जान बचाई।
और जब मैं 21 साल का हुआ तो मोटरसाइकिल चलाने के क्रम में बहुत भीषण एक्सीडेंट होने से बाल-बाल बचा।
अब आप में से बहुत लोग मुझे अनलकी, अभागा या मेरी कुंडली में दोष जैसा उदहारण दे सकते हैं। मैं इनसब चीज़ों को नहीं मानता। और न ही अच्छे और बुरे कर्मों का जीवन-मृत्यु से कोई लेना-देना हैं। क्योंकि अच्छे लोग आमतौर पर जल्दी ही चले जाते हैं और बुरे लोगों से तो धरती भड़ी पड़ी हैं। जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ती गई बस मुझे ये एहसास होता चला गया कि "ज़िन्दगी की कोई फिक्स्ड एक्सपायरी डेट नहीं"। सीधे शब्दों में कहे तो ज़िन्दगी का कोई भरोसा नही..ये कभी भी धोखा दे सकती हैं। और आज में हर पल, हर दिन, हर वक़्त को ईमानदारी से जीता हूँ। दुखी भी होता हूँ, परेशान भी होता हूँ..लेकिन जब जो करना हैं तब तब वो करता हूँ। सीधे शब्दों में कहूँ तो वर्तमान में रहकर मैं भविष्य के बारे में नही सोचता हूँ। क्योंकि मैं इस चीज़ को अनुभव कर चुका हूं कि ज़िन्दगी का कोई भरोसा नही।
मैं यहाँ नकारात्मक बाते नही कर रहा, मैं बस सच कह रहा हूँ। हो सकता हैं आपमें से बहुत लोग ऐसा मानते हो की जिसका जब जाने का समय होता हैं वो उस वक़्त ही जाता हैं। लेकिन किसका जाने का समय कब है, ये पता करना हम इंसानों के बस की बात नही। हम इंसान तो घिरे हुए हैं खतरों से। सड़क पर चलते वक़्त खतरा, ट्रैन में सफर करते वक़्त खतरा, क्रिकेट खेलते हुए खतरा, रिश्तेदार-पड़ोसियों से खतरा। चूल्हे पर खाना बनाते वक़्त खतरा, कमरे का बल्ब बदलते वक़्त खतरा।
दोस्तों सारांश यह है कि..मेरे पास बहुत वक़्त हैं ऐसा सोचकर मत चलिये। हरएक पल और हरएक दिन को बिंदास होकर जीये। जॉब करते हैं, जॉब कीजिये..पढाई करते हैं पढाई कीजिये..खेती करते हैं खेती कीजिये। आप जो करते हैं वो कीजिये..लेकिन ज़िन्दगी का भरपूर मजा लेते रहिये (यहाँ तात्पर्य यह बिल्कुल भी नही होगा की आप गलत रास्ते पर जाकर ज़िन्दगी को ऐशो-आराम और मौज-मस्ती में जीये)।
लोगों को कुढ़ कुढ़ कर जीते जब देखता हूँ तो दया आती हैं। कुढ़ने की बहुत सारी वजहें होती हैं लेकिन ऐसे लोग न ही खुद खुश रह पाते हैं और न ही किसी और को ख़ुशी दे पाते हैं। माँ-बाप, भाई-बहन, दोस्त जो भी हैं.. सबमे भरपूर खुशियां बांटे। इतनी सारी मिठास भरी यादें सबके जेहन में घोल दीजिये..की जब आप न रहे तो लोग बस आपकी ही बात करे। और यकीन मानिए जब लोग आपको सच्चे दिल से याद करेंगे तो आप एक ऐसी ज़िन्दगी जीकर गये हैं जिसमे आपने खुद को खुशी देने के साथ साथ दुसरो के गम को जी भरकर बांटा होगा। या फिर जब भी जाने का वक़्त आएगा तब आपको यह लगेगा कि, अरे साला हम तो वो ज़िन्दगी भरपूर जीकर जा रहे हैं जिस ज़िन्दगी का कोई भरोसा ही नही।
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