बस यही कहूंगा..किसी दुसरे व्यक्ति के किरदार को इतनी संजीदगी से निभाते मैंने किसी को नही देखा। रणबीर..रणबीर कम और संजय दत्त ज्यादा लगे हैं। संजू का रोल कर रहे रणबीर कपूर ने तो जैसे इस रोल को जी लिया। फिल्म देखते वक्त कई बार आप खुद गच्चा खा जाएंगे कि स्क्रीन पर संजय दत्त हैं या रणबीर।
निर्देशक के तौर पे हिरानी ने लाजवाब काम किया हैं। व्यक्ति के रूप में हिरानी की संजय दत्त से सहानुभूति समझी जा सकती है। लेकिन फिल्मकार हिरानी अगर संजू के साथ थोड़े 'निर्दयी' हो पाते, तो वो अपनी उस कला के साथ और ज्यादा न्याय कर पाते, जिसकी वजह से हर एक्टर या एक्ट्रेस का सपना हिरानी के साथ काम करने का होता है। हिरानी को ये भूल जाना था कि संजू का संजय दत्त उनका अजीज है। वो भूल नहीं पाए।
तीन शब्दों पर गौर करें- गुनाह, गलती और नादानी। नकारात्मकता के लिहाज से गुनाह सबसे ज्यादा नकारात्मक साउंड होता है, जबकि नादानी सबसे कम। ‘संजू’ में संजय दत्त के तमाम नकारात्मक पक्षों को नादानी के आसपास दिखाया गया है। मसलन- वे अंडरवर्ल्ड से मिले अवैध हथियार रखते हैं, लेकिन परिवार की रक्षा के लिए- नादानी की वजह से। वो ड्रग्स लेते हैं- लेकिन पिता की डांट और मां की बीमारी के तनाव में- नादानी की वजह से। उन्होंने कई सारे सेक्शुअल रिश्ते बनाए- नादानी में।
फिल्म संजय दत्त के गुनाहों से ज्यादा उनकी झेली गई पीड़ी पर फोकस करती है। और इस वजह से दर्शकों के अंदर उनके लिए सहानुभूति भी पैदा करती है। जबकि समाज के अंदर असल में ऐसा नहीं होता। समाज आपके गुनाहों को याद ही नहीं रखता, बल्कि बार-बार आपको उसके बारे में याद भी दिलाता है। भले ही आपने उसकी सजा भुगत ली हो। रही बात सहानुभूति की, तो असल जिंदगी में शायद ही कभी इसकी उम्मीद एक गुनाह करने वाला कर सकता है।
अगर इन सब चीजों को बगल में रखते हुए हम फिल्मे देखने की सोचते हैं तो कुल मिलाकर यह एक मजेदार फिल्म हैं जो आपको रुलाती भी हैं और गुदगुदाती भी हैं। फिल्म कही भी बोर नही करती और 2 घंटे 40 मिनट कैसे निकल जाते हैं पता भी नही चलता। राजकुमारी हिरानी की पिछली फिल्मों से कही न कही यह फिल्म थोड़ी सी कमजोर लगती हैं। अगर आप संजय दत्त के फैन हैं तो आपको यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए और अगर नही हैं तो रणबीर के उम्दा काम के लिए तो देखनी ही देखनी चाहिए।
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