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Thursday, June 28, 2018

रेलगाड़ी और हम


पटरियों पर दौड़ती रेलगाड़ी को देखकर लगा
हम भी तो दौड़ रहे हैैं इसी की तरह
वास्तव में वक़्त की पटरियों पर दौड़ती
ज़िन्दगी एक रेलगाड़ी ही तो है
जो चलती है एक बचपन के स्टेेेशन से
अपने गंतव्य की और,
जी हाँ, गंतव्य जो एक ही है सबके लिए
और वहां तक पहुंचते पहुंचते रुकती है
बहुत सारे स्टेशनों पर
कभी रुक जाती है बीच में यूूँ ही बिना किसी स्टेशन के
तो कभी वक़्त से ज्यादा वक्त लगाती है कहीं
कभी रफ्तार धीमी तो कभी तेज़
कभी वक़्त से पहले भी पहुंच जाती है कहीं
कितने ही सहयात्री मिलते हैं रास्ते मे
कोई उतरता है कोई चढ़ता है
कोई दिल मे बस जाता है कोई भूल जाता है
तो कोई पूरे सफ़र तक साथ चलता है
कोई किसी स्टेशन पे हमे विदा करके जाता है
तो कोई अगले स्टेशन पे फिर से अपना हो जाता है
झटके लगते हैं कभी तो कभी चैन से बर्थ पे सोते हैैं
और फिर कभी कभी यहां हादसे भी तो होते हैं
लंबे सफ़र मे कभी इंजन बदलना होता हैै
तो कभी पुराने इंजन से ही मीलों चलना होता है
घना जंगल हो या हसीन वादियां
ऊंचे पहाड़ या लंबी गुफाएं
रेलगाड़ी चलती रहती है यूँ ही बिना रुके
सब स्टेशनो को पार करती हुई
कभी धीमे कभी तेज़
अपने गंतव्य की और बढ़ती हुई
जी हाँ, गंतव्य जो एक ही है सबके लिए ।

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