इरफान भाई की न्यूज सुनते ही मेरे चेहरे पर जो उदासी छा गयी थी, उसे मेरी छोटी बहन ने आसानी से पढ़ लिया। फिर जब कुछ शब्दों के साथ इरफान भाई को याद किया, तो बहन ने कहा इनके लिए बस इतना ही। तब मन और भारी सा हो गया। लिखने के लिए चित्त शांत होना पड़ता है। लेकिन शरुआती कुछ घंटे एक अजब सी बेचैनी रही। अब जब लगभग पूरा दिन बीतने जा रहा है, तो सोच रहा हूँ..उस शख्स के बारे में क्या लिखूं जो खुद एक खुली किताब था।
इरफान भाई में न तो कोई बनावटी स्टाइल था और न ही झूठा टशन। वे हमेशा ही आम आदमी के हीरो लगे है। ज्यादातर फिल्मों में उन्होंने "मिडिल क्लास मैन" की जो भूमिका निभाई है, शायद इसी कारण दर्शक उनसे अपना एक जुड़ाव महसूस करते है। जो सादगी उनके अभिनय में निखर कर बाहर आती थी, उसका कुछ अंश शायद उनका अपना भी था।
उनका बोलने का लहज़ा भी किसी डैशिंग हीरो की तरह नही था। वह तो बस अपने अंदाज में बोल जाते थे। किसी खास स्टाइल में वो चलते भी नही थे, बस उनकी अदाकारी का एक अलग स्टाइल चलता था। अपने किरदारों को इरफान भाई शायद फिल्मों में जीते थे, इसीलिए वह किसी भी पात्र के रूप में पूरी तरह फिट नजर आते थे।
फेमस लोकेशन, महंगे परिधान, भव्य सेट की उन्हें कभी जरूरत ही नही पड़ी, क्योंकि उनकी फिल्मों में दर्शक सिर्फ उन्हें देखते थे। शायद ही कोई पॉपुलर गाना या कोई आइटम सॉन्ग उनकी फिल्मों में जबरदस्ती ठूंसे गए हो। संगीत में भी उन्होंने अपने अभिनय को ही दर्शाया। ज्यादातर छोटे बजट की फिल्मों से अपने अभिनय का लोहा मनवाना, इस बात का प्रमाण ही तो है कि इरफान भाई कभी किसी क्लब में शामिल होने के पीछे नही भागे।
टीवी में कुछ मिनटों के किरदार से लेकर हॉलीवुड की फिल्मों में बतौर अभिनेता के रूप में काम करने का सफर..यूं ही इतना आसान नही रहा होगा। आम आदमी के जिस संघर्ष का चित्रण वह अपनी फिल्मों में करते थे, शायद उसी तरह का संघर्ष उनका जीवन में भी रहा हो। बावजूद इसके स्टारडम कभी उनके कपार पर भी चढ़ा हो, ऐसा देखने तो क्या कभी सुनने तक को न मिला। क्योंकि स्टार बनने की होड़ में इरफान भाई कभी लगे ही नही।
इरफान भाई के व्यक्तिगत जीवन को न तो कभी जानने की कोशिश की और न ही कभी करूंगा। फिल्मों के अलावा भी जितना उन्हें देखा व सुना, वह बेहतरीन ही लगे। आज हर कोई व्यथित होकर इरफान भाई को याद कर रहा है। उनका यूं ही चले जाना सिनेमा जगत के साथ-साथ दर्शक दीर्घा के लिए भी अपूरणीय क्षति है। वे बड़े रुपहले पर्दे पर फिर कभी नही दिखेंगे, लेकिन मन-मस्तिष्क के पर्दे पर जो छाप उनकी अंकित है...वह सदा के लिए अमिट है।
लब यूं इरफान भाई
-आशीष झा
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