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Monday, April 13, 2020

शहर के हजारों प्रेमियों की तरह ही अंदर से खाली...'वेरोनिका'

***फिल्म कॉकटेल की करैक्टर 'वेरोनिका' पर***

वेरोनिका! अगर स्लट है तो अंग्रेजी व्याकरण को अपनी परिभाषाएं बदल लेनी चाहिए..
"वह तो सबसे फ़्लर्ट करती है उसका कोई क्रश नहीं… उसका कोई आशिक अंतिम नहीं... प्रेमी उसके लिए गणित की संख्या जितने है... आठवां प्रेमी, नौवां प्रेमी, दसवां आशिक..." भले ही वेरोनिका ऐसा कहती हो...लेकिन उसके सारे दावे झूठे हैं.. असल में वेरोनिका शहर के हजारों प्रेमियों की तरह ही अंदर से खाली है..
वह भी चाहती है कि कोई अचानक से उसे छत पर जाकर चांद देखने को कहे... वह भी चाहती है कि कोई ‘दिल्ली हाट’’ से झुमके लाकर उसके कानों में पहना देता.. वह भी चाहती है कोई उसके लिए दरियागंज के किसी किताबखाने से विक्रम सेठ की "कोई अच्छा सा लड़का" लेते हुए आता.. वह भी चाहती है कि हर शाम कोई उससे भी कहे कि "पता है! आज तो बहुत मिस किया तुम्हें, जिसे सुनकर वो दो बार इतराती. चार बार आईना देखती...बार-बार कंघा करती...
अपने उसी प्रेमी को पाने की चाह में वेरोनिका अपनी स्कर्ट, बीयर, क्लब-स्लब वाली जिंदगी के इतर "वाइफ मेटेरियल" बनने की चाह करने लगती है.. लेकिन अंत अंत होते होते उसे इस बात का अफ़सोस होने लगता है कि उसकी ‘सबका ख्याल रखने वाली’ प्रवृति की तारीफ़ करने के बाद भी प्रेमी की माँ उसे ‘वाईफ मेटेरियल’ के रूप में क्यों नहीं देखती..


उसे मलाल होने लगता है कि चाहकर भी वह ‘’दुल्हन का इन्डियन वर्जन’ क्यों नहीं बन पा रही!
वेरोनिका शायद नहीं जानती कि हिंदुस्तान में स्त्री की यौनिक शुचिता ही उसके चरित्र मापने का पैरामीटर है, अपनी इच्छा का प्रेम पाने के लिए घर छोड़ देने वाली मीरा नहीं बल्कि अपने पति की इच्छा के लिए घर छोड़ने वाली ‘सीता’ यहाँ ‘आदर्श पत्नी’ का मानक हैं, वेरोनिका को जब महसूस होने लगता है कि उसका ‘उन्मुक्त’ होकर जीना ही उसे पत्नी बनने की परिभाषाओं से अलग कर दे रहा है तब वेरोनिका अपनी खुद की ‘आजाद इच्छाओं’ से भी समझौता करने के लिए तैयार हो जाती है..
जब वह कहती है न कि "वह किसी से प्यार नहीं कर सकती... वह तो प्रैक्टिकल है " तब उसका असल अर्थ होता है कि वह अपने प्यार को जताकर फिर से रिस्क नहीं लेना चाहती.. जिसके अंत में ठगा जाना ही तय है.. वह नहीं चाहती कोई फिर से कह जाए "अरे तुम तो स्लट हो..!"


स्त्री प्रेम में केवल अपना शरीर ही नहीं सौंपती, अपनी इच्छाओं को भी मार देती है.. लेकिन यह भी सच है कि
जब भी दुनिया की सारी औरतें बुरका और घूंघट से बाहर किसी बाजार में निकलेंगी, तब वह भी किसी आजाद चिड़िया सी हो जाना चाहेंगी, जिनके घोसले उन्हें उड़ने की मनाही न करते हों, लेकिन एक अदब प्रेम पाने के लिए वह "पत्नी" बन जाना चाहती हैं।
असल में वेरोनिका किसी कॉमिक्स की कोई नायिका नहीं है बल्कि ऑफिस जाने वाली हर वह लड़की है, जिन्हें बस इतनी सी चाह है कि कोई हो जिसपर उनके दैहिक दावे हों..कोई हो जो उनसे कहे कि "तुम सिर्फ मेरी हो"..
ऐसा कहना भले ही पेट्रिआर्कल है, भले ही ऐसा कहने में एक तरह की पजेसिवनेस है, लेकिन वो लड़कियां इन्हीं छोटी छोटी चीजों में ही प्रेम ढूंढ लेना चाहती हैं, उनकी यही छोटी-छोटी सी ख्वाहिशें हैं कि कोई हो जो उन्हें स्पेशल कहे.. थोड़ी सी इम्पोर्टेन्स दे.. थोड़ा सा रेस्पेक्ट करे.. उन्हें किसी लम्बोर्गिनी की चाह नहीं..
लेकिन इन छोटी सी ख्वाहिशों के न मिलने में ही तो रिस्क है, जिनके न मिलने का अंत फिर महीनों किसी कमरे में "चुप" हो जाने से होता है..

इसलिए वेरोनिका उस दुनिया से ही बाहर आ जाना चाहती है, जहां प्रेम पाने के लिए किसी दूसरे पर निर्भर हुआ जाए.. ये जानते हुए भी कि कल फिर से उसे किसी दोस्त के किसी गंदे जोक पर हंसना है.. कल फिर से बालों में बार-बार कंघी करना बन्द कर देना है... कल फिर से औरों से कहना है
"मैं तो किसी से प्यार नहीं कर सकती.. मैं तो प्रैक्टिकल हूँ...."
( फ़िल्म - कॉकटेल )


श्याम मीरा सिंह की रचना

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