TVF दर्शकों की नब्ज पकड़ने में माहिर है..इस बात को फिर से साबित करती है उनकी हाल ही में रिलीज़ हुई वेब सीरीज "पंचायत"। पंचायत देखने के दौरान ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं हम भी उस कहानी के हिस्से है। जिस सादगी व सरलता से लेखक ने पठकथा लिखी है, उससें तो यही साबित होता है कि गाँव के जीवन को या तो उसने जीया है या फिर बारीकियों से देखा है।
वह गाँव जहाँ का प्रधान हमेशा रुआबदार नही होता, बेहद सरल व सौम्य भी होता हैं। कुर्सी व अन्य फायदे का थोड़ा बहुत लोभ उसके भीतर जरूर है, लेकिन वह मासूम व असल सा प्रतीत होता है। जहाँ आज भी पत्नी छोटी-छोटी बातों को लेकर पति को ताना मारा करती है। वह गाँव जहाँ आज भी किसी भूतहा पेड़ की झूठी अफवाएं मौजूद होती है। सड़के आज भी कच्ची है, बिजली आज भी जाती है। कुल मिलाकर "पंचायत" की गाँव बॉलीवुड की बनावटी गाँव से बिल्कुल अलग है। कहा जाए तो "पंचायत" की गाँव ही भारत के ज्यादातर गाँव की असल तस्वीर है।
पंचायत की कहानी उ.प्र. के फुलेरा गाँव के पंचायत में नए नए नियुक्त हुए पंचायत सचिव "अभिषेक त्रिपाठी" उनके सहायक "विकास", गाँव के प्रधान बृजभूषण पांडेय व उपप्रधान "प्रहलाद" के इर्द-गिर्द घूमती है। अभिषेक शहर का रहनेवाला एक लड़का है जिसकी नौकरी गाँव के पंचायत ऑफिस में लग जाती है। उसे मजबूरन नौकरी करने फुलेरा गाँव आना पड़ता है, जहां उसकी मुलाकात बाकी के अन्य लोगो से होती है। वहीं से शुरू होती है शहर के "अभिषेक त्रिपाठी" की ग्राम यात्रा..जहां उसके साथ नित नए तरह तरह के छोटे-मोटे कांड होते है जिससे वह परेशान हो जाता है।
पंचायत की सबसे बड़ी खासियत है इसका ठेठ देहातीपन। एक सीन है जहां प्रधान जी शौच से आने के बाद चापाकल पर अपना लोटा मिट्टी से धोते है..जितनी बारीकी से "रघुबीर यादव" ने इस तरह की छोटी छोटी चीज़ों पर भी अभिनय किया है, वह यह सिद्ध करता है कि वह एक अव्वल दर्जे के कलाकार है। उपप्रधान का किरदार निभा रहे है "फैसल मलिक" ने भी बेहद अच्छा अभिनय किया और बीच बीच मे हँसाने का काम भी किया है। प्रधान की पत्नी का किरदार निभा रही "नीना गुप्ता" जो कि वास्तविक प्रधान है..उनके हिस्से ज्यादा कुछ नही आया। लेकिन जितना भी आया, उसे उनसे बेहतर कोई और नही कर सकता था।
इस कहानी का सबसे खूबसूरत पात्र रहे है "अभिषेक त्रिपाठी" और "विकास"..यानि कि "जीतू भैया" और "चंदन राय"। जीतू भैया की बात करे तो संवाद तो दूर वह अपने हावभाव से ऐसी अदाकारी करते है जैसे कोई शूटिंग न होकर असल जीवन चल रहा हो। उनके उच्च कोटि के अभिनय से भविष्य में एक महान कलाकार बनने की छवि साफ साफ नजर आती है। बात करे विकास का किरदार निभा रहे "चंदन राय" की, तो TVF ने अपने पिटारे से एक नए सितारे की खोज की है। बंदे ने अपने संवाद जिस देसी अंदाज़ में बोले है, वह गाँव का कोई देसी छोरा ही बोल सकता है। लड़के ने इतना उम्दा अभिनय किया है, मानो जान फूंक डाली हो "पंचायत" में।
कुल मिलाकर सिरीज़ "बेजोड़" है। लेखक चंदन कुमार ने जितनी बेहतरीन कहानी लिखी है, दीपक मिश्रा ने उतने ही बेहतरीन तरीके से उसे पर्दे पर उतारा है। गाँव के दृश्य बिल्कुल असल लगने के लिए कैमरामैन धन्यवाद के पात्र है। मारधार, गाली-गलौच, फूहड़पन..इन सबसे अगर आप पक गए है तो यह साफ-सुथरी कल्ट वेबसेरीज़ आपके देखने लायक है।
- आशीष झा
जुड़े रहिये हमारे फेसबुक पेज Kadak Miajji से
वह गाँव जहाँ का प्रधान हमेशा रुआबदार नही होता, बेहद सरल व सौम्य भी होता हैं। कुर्सी व अन्य फायदे का थोड़ा बहुत लोभ उसके भीतर जरूर है, लेकिन वह मासूम व असल सा प्रतीत होता है। जहाँ आज भी पत्नी छोटी-छोटी बातों को लेकर पति को ताना मारा करती है। वह गाँव जहाँ आज भी किसी भूतहा पेड़ की झूठी अफवाएं मौजूद होती है। सड़के आज भी कच्ची है, बिजली आज भी जाती है। कुल मिलाकर "पंचायत" की गाँव बॉलीवुड की बनावटी गाँव से बिल्कुल अलग है। कहा जाए तो "पंचायत" की गाँव ही भारत के ज्यादातर गाँव की असल तस्वीर है।
पंचायत की कहानी उ.प्र. के फुलेरा गाँव के पंचायत में नए नए नियुक्त हुए पंचायत सचिव "अभिषेक त्रिपाठी" उनके सहायक "विकास", गाँव के प्रधान बृजभूषण पांडेय व उपप्रधान "प्रहलाद" के इर्द-गिर्द घूमती है। अभिषेक शहर का रहनेवाला एक लड़का है जिसकी नौकरी गाँव के पंचायत ऑफिस में लग जाती है। उसे मजबूरन नौकरी करने फुलेरा गाँव आना पड़ता है, जहां उसकी मुलाकात बाकी के अन्य लोगो से होती है। वहीं से शुरू होती है शहर के "अभिषेक त्रिपाठी" की ग्राम यात्रा..जहां उसके साथ नित नए तरह तरह के छोटे-मोटे कांड होते है जिससे वह परेशान हो जाता है।
पंचायत की सबसे बड़ी खासियत है इसका ठेठ देहातीपन। एक सीन है जहां प्रधान जी शौच से आने के बाद चापाकल पर अपना लोटा मिट्टी से धोते है..जितनी बारीकी से "रघुबीर यादव" ने इस तरह की छोटी छोटी चीज़ों पर भी अभिनय किया है, वह यह सिद्ध करता है कि वह एक अव्वल दर्जे के कलाकार है। उपप्रधान का किरदार निभा रहे है "फैसल मलिक" ने भी बेहद अच्छा अभिनय किया और बीच बीच मे हँसाने का काम भी किया है। प्रधान की पत्नी का किरदार निभा रही "नीना गुप्ता" जो कि वास्तविक प्रधान है..उनके हिस्से ज्यादा कुछ नही आया। लेकिन जितना भी आया, उसे उनसे बेहतर कोई और नही कर सकता था।
इस कहानी का सबसे खूबसूरत पात्र रहे है "अभिषेक त्रिपाठी" और "विकास"..यानि कि "जीतू भैया" और "चंदन राय"। जीतू भैया की बात करे तो संवाद तो दूर वह अपने हावभाव से ऐसी अदाकारी करते है जैसे कोई शूटिंग न होकर असल जीवन चल रहा हो। उनके उच्च कोटि के अभिनय से भविष्य में एक महान कलाकार बनने की छवि साफ साफ नजर आती है। बात करे विकास का किरदार निभा रहे "चंदन राय" की, तो TVF ने अपने पिटारे से एक नए सितारे की खोज की है। बंदे ने अपने संवाद जिस देसी अंदाज़ में बोले है, वह गाँव का कोई देसी छोरा ही बोल सकता है। लड़के ने इतना उम्दा अभिनय किया है, मानो जान फूंक डाली हो "पंचायत" में।
कुल मिलाकर सिरीज़ "बेजोड़" है। लेखक चंदन कुमार ने जितनी बेहतरीन कहानी लिखी है, दीपक मिश्रा ने उतने ही बेहतरीन तरीके से उसे पर्दे पर उतारा है। गाँव के दृश्य बिल्कुल असल लगने के लिए कैमरामैन धन्यवाद के पात्र है। मारधार, गाली-गलौच, फूहड़पन..इन सबसे अगर आप पक गए है तो यह साफ-सुथरी कल्ट वेबसेरीज़ आपके देखने लायक है।
- आशीष झा
No comments:
Post a Comment
आपको यह कैसा लगा? अपनी टिप्पणी या सुझाव अवश्य दीजिए।