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Thursday, May 28, 2020

विनायक दामोदर सावरकर कैसे बने 'वीर सावरकर'


सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र में नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था। जब वे नौ वर्ष के थे तभी 'हैजा' की महामारी में उनकी माता, राधाबाई का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् 1891 में प्लेग की महामारी में उनके पिता, दामोदर पन्त भी स्वर्ग सिधारे। इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार का पालन पोषण किया। पुणे कालेज से स्नातक के बाद 1906 में वो वकालत के लिए लंदन चले गए। उस दौरान उनका रुझान राजनीति की ओर बढ़ गया।

कैसे मिली 'वीर' सावरकर की उपाधि..? साल 1936 में कांग्रेस के साथ मतभेद की वजह से सावरकर का पार्टी के भीतर विरोध होने लगा था। लेकिन कांग्रेस में ही एक ऐसे व्यक्ति भी थे जो सावरकर के साथ खड़े हुए थे। इस व्यक्ति का नाम पीके अत्रे था जो कि मशहूर पत्रकार, शिक्षाविद, कवि और नाटककार थे और वीर सावरकर से बेहद प्रभावित थे।

अत्रे ने पुणे में अपने बालमोहन थिएटर के कार्यक्रम में सावरकर स्वागत कार्यक्रम आयोजित किया था। इसके विरोध में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सावरकर को काले झंडे दिखाने की धमकी भी दी थी। इस विरोध के बावजूद हजारों की संख्या में लोग इस कार्यक्रम में आए और सावरकर का स्वागत कार्यक्रम संपन्न हुआ। इसी दौरान, अत्रे ने सावरकर को 'वीर' की उपाधि से संबोधित करते हुए कहा- 'जो काला पानी से नहीं डरा, काले झंडों से क्या डरेगा?' उसके बाद विनायक दामोदर सावरकर को 'वीर' सावरकर के नाम से जाना जाने लगा।

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