भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जिस तरह से भारत-चीन सीमा विवाद को दिखाया जा रहा है, उसे देखकर तो ऐसा ही लगता है मानो कि कुरुक्षेत्र तैयार है और बस इंतजार है तो केवल रण-बिगुल बजने का।
लेकिन वास्तविकता इससे परे है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी घटना कई आयामों का परिणाम होती है। कई अदृश्य शक्तियां और फैसले किसी दृश्य घटना का आधार तैयार कर रहे होते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ़ परिघटना को कमज़ोर और समाप्त करने में भी अहम भूमिका निभाती हैं।
साल 2019 के दिसम्बर महीने में चीन में कोरोना वायरस का कहर शुरू हुआ और धीरे-धीरे विश्व को इसका पता चला। अमेरिका जो आर्थिक दृष्टि से चीन का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी है उसने चीन के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। फिर ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और पश्चिमी विश्व के देशों ने चीन पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए। इसका साफ अर्थ यह है कि वैश्विक स्तर पर चीन को अलग-थलग करने की पुरज़ोर कोशिश हुई। इसके परिणामस्वरूप चीन कूटनीतिक स्तर पर कमज़ोर भी हुआ।
चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात आधारित व्यवस्था है। यानी चीन को सदैव एक बड़ा बाजार चाहिए अपने उत्पाद (वस्तुओं व सेवाओं) का विक्रय करने के लिए। भारत चीन के लिए सबसे बड़ा और अच्छा बाज़ार है। दूसरी बात यह कि चीन में विश्व की कई नामी कम्पनी यथा एप्पल, डीएचएल, यूनाइटेड टेक्नोलॉजी, यूनिलीवर आदि अपने सामान वहीं एसेंबल करती करती है और फिर उत्पाद को विश्व भर में बेचती है।
जहां एक ओर वैश्विक अर्थव्यवस्था का मोह चीन से भंग हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर आत्मनिर्भर भारत , पसंद की अभिव्यक्ति (ईओआई), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी कि एफडीआई जैसे तमाम आर्थिक सुधार कर विश्व भर की कम्पनियों के लिए खुद को चीन के बेहतर विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करना चाह रहा है।
भारत चीन के विरुद्ध राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक तीनों ही स्तरों पर मोर्चा संभाले हुए है।
राजनीतिक स्तर पर यदि देखें तो चीन हांग कांग को अपना स्वायत्त क्षेत्र मानता है। अभी हाल ही में भारत को अगले एक साल के लिए विश्व स्वास्थ परिषद (डव्लू एच ए) का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। डब्लूएचओ में शीर्ष पद पाते ही भारत ने सबसे पहले हांग कांग पर ही अपनी प्रतिक्रिया दी। इससे चीन का आग बबूला होना लाज़मी था। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर विवाद में भारत जापान,फिलीपींस, वियतनाम जैसे राष्ट्रों के साथ खड़ा है,जो कि चीन विरोधी गुट है।
बेल्ट एंड रोड पहल के अंतर्गत चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर(पीओके) से होकर सड़क बनायी है। विगत कुछ दिनों से भारत ने पीओके पर जो रूप अख्तियार किया है,वो भी कहीं न कहीं चीन को परेशान कर रहा है।
कूटनीतिक स्तर पर भारत पश्चिमी विश्व, आसियान राष्ट्र, क्वाड(भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका), अरब और रूस का एक बेहतर साझेदार और सभी मौसम मित्र(All weather friend) के रूप में सामने आया है। 16 राष्ट्रों का प्रस्तावित समूह क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership) अब तक भारत के विरोध के कारण अमल में नही आ पाया है। चीन के चेक बुक नीति से परेशान विश्व कोरोना महामारी को चीन के विरुद्ध एक हथियार के तरह प्रयोग करना चाहता है। ऐसे में भारत को जो वैश्विक समर्थन मिल रहा है उसको देखते हुए तो इतना जरूर कहा जा सकता है कि युद्ध अभी दूर है।
वर्तमान में भारत और चीन के बीच लद्दाख में सीमा के पास तनाव बढ़ गया है। लद्दाख हाल ही में बनाया गया भारत का सबसे नया केंद्र शासित प्रदेश है। लद्दाख में काराकोरम दर्रे से लेकर पोंग-सो झील तक भारत - चीन के बीच एक सीमा है जिसे जॉनसन रेखा कहते हैं। इसे 1865 में ब्रिटिश अधिकारी द्वारा तय किया गया था। भारत यहां तक के क्षेत्र पर दावा करता है और इसे वास्तविक भारत-चीन सीमा मानता है। जबकि चीन 1899 में एक अन्य ब्रिटिश मैकडोनाल्ड द्वारा निर्धारित मैकडोनाल्ड रेखा को सीमा मानता है, जो दीपसांग मैदान ,लिंगी तांग,अक्साई चीन,पोंगसो पर चीन का अधिकार स्थापित करता है। हालांकि चीन अपनी इस सीमा का भी निरंतर अतिक्रमण करता रहा है और 1993 में हुए शांति समझौते का उल्लंघन करता रहा है।
भारत ने इस मामले का निपटान अपने परिचित अंदाज़ में यानी वार्ता से ही चाहा। इसके लिए भारतरत्न स्वर्गीय अटल जी ने 2003 में विशेष प्रतिनिधि वार्ता भी प्रारम्भ की। लेकिन 22 दौर के बैठकों के बाद भी अब तक इस मुद्दे पर निर्णय नहीं किया जा सका है।
किन्तु वर्तमान परिस्थिति में भारत 20वी सदी वाली दशा में नही है। शकेतकर समिति के सुझावों पर अमल कर भारत ने सीमा इंफ़्रा को बहुतहद तक सुदृढ़ और बेहतर किया है। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने लद्दाख में दौलत बेग ओल्डी तक सड़क निर्माण कर भारत को सामरिक स्तिथि से मजबूत किया है। यही कारण है कि भारत ने सीमा पर सैनिक टुकड़ियां बढ़ाकर चीन को उसी की भाषा में जबाब देने में तनिक भी देरी नहीं की है।
ऐसी खींचतान,नोकझोंक, संघर्ष की खबरें आपको हर उस पल आती रहेगी जब भी सीमा के इसपार या उसपार के नीति निर्माताओं को किसी मुद्दे से ध्यान हटाना हो।
जो उस राष्ट्र की छवि,कूटनीतिक, राजनीतिक और आर्थिक नीतियों पर प्रश्न खड़ा करता हो। इसे ही तो गुरुदेव रबिंद्र नाथ टैगोर ने छद्म राष्ट्रवाद कहा है।
- टीम कड़क मिजाजी से 'रिपुदमन'
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