साभार- इंटरनेट |
वैसे तो साल में महीनों की संख्या होती है 12। मौसम भी होते हैं 3। पर उन सभी में सबसे ज्यादा फुटेज मिलती है सावन के महीने और मौसम को। फिर चाहे मामला फिल्मों का हो, रोमांस का हो, मस्ती का हो, फोटोग्राफी का हो, या फिर आध्यात्मिक हो।
आज बात सावन के महीने के आध्यात्मिक महत्व की। सावन का महीना भगवान भोलेनाथ यानि की महादेव को अत्यंत ही प्रिय माना जाता है। इस महीने में पड़ने वाले सोमवार का भक्तों के लिए विशेष महत्व होता है। इसी महीने में प्रसिद्ध कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है। जिसमें शिव भक्त कांवड़ में जल उठा कर महादेव के 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन और जल चढ़ाने के लिए पैदल ही नंगे पैर काफी लंबी दूरी तय करते हैं।
एक तरफ जहां लोग भक्ति में सराबोर सावन के महीने में व्रत, कावंड़ यात्रा और दान पुण्य जैसे काम करते हैं। तो वहीं पर कुछ भक्त ऐसे भी हैं जो शिव भक्ति के नाम पर गांजा, भांग, और कई दूसरे तरह के नशीले पदार्थों का सेवन कर अराजकता फैलाने की सबसे बड़ी वजह भी बनते हैं। जिनकी वजह से दूसरे सीधे-सादे शिव भक्तों को बेवजह ही बदनाम होना पड़ता है।
हालात धीरे धीरे इतने खराब हो चुके हैं कि आज के वक्त में शिव भक्ति को सीधे तौर पर नशे से ही जोड़ कर देखा जाने लगा है। पिछले कुछ सालों में यह भी देखने को मिला है, कि किस तरह से कुछ कांवड़िये नशे में धुत्त होकर हंगामा मचाते हैं। जिस वजह से सदियों पुरानी यात्रा और कांवड़ प्रथा पर एक अनचाहा दाग लगता है।
आध्यात्म या शिव भक्ति में गांजा, या भांग जैसे नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों का तर्क यह रहता है कि यह बाबा का प्रसाद है। और स्वयं भगवान भोले नाथ भी इसका सेवन करते हैं। पर शायद भोले के भोले भक्त यह भूल जाते हैं कि महादेव ने हलाहल का भी सेवन किया था।
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