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Sunday, August 2, 2020

नई शिक्षा नीति से बदलेगा पढ़ने का तरीका, शिक्षकों के साथ माता-पिता की भी जिम्मेदारी होगी तय


बदलते युग के साथ देश की व्यवस्था को बदलना बेहद जरूरी है। इसमें सबसे बड़ा और सबसे पहला बदलाव शिक्षा व्यवस्था में होना चाहिए क्योंकि उचित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बिना हम नई दुनिया के साथ कदमताल नहीं कर सकते।

केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति, 2020 को मंजूरी दे दी है। यह शिक्षा व्यवस्था में आवश्यक सुधार एवं बड़े बदलाव के लिए लायी गयी है। इसके पहले सन् 1986 में राजीव गांधी के समय नई शिक्षा नीति आयी थी जिसके तहत हमारी शिक्षा व्यवस्था अभी चल रही है। 1992 में इस शिक्षा नीति में कुछ बदलाव किए गए थे।

इस शिक्षा नीति के लिए बनी समिति के अध्यक्ष पूर्व इसरो प्रमुख के.कस्तूरीरंगन हैं जिन्होंने वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में शैक्षणिक सुधारों का सुझाव दिया था जिसके बाद इस 'नई शिक्षा नीति' का प्रारूप तैयार हुआ और अब इसे कैबिनेट की मंजूरी मिल गयी है। उम्मीद है कि अगले वर्ष इसे लागू कर दिया जाएगा।

आखिर क्या है इस नई शिक्षा नीति में बड़े बदलाव और यह कितना जरूरी था इसे हम बिंदुवार समझने की कोशिश करते हैं:

1. इस शिक्षा नीति के लागू होते ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम अब शिक्षा मंत्रालय हो गया जो बहुत पहले हो जाना चाहिए था।

2. अनिवार्य शिक्षा को 6-14 वर्ष से बदलकर अब 3 से 18 वर्ष कर दिया जाएगा।

3. शुरुआत के तीन वर्ष बच्चे घर में सीखेंगे (बाल विकास के सिद्धान्त के अनुसार बच्चा जन्म से कुछ-न कुछ सीखता है, इसलिए उसे शुरुआती 3 वर्ष माता-पिता को अपनी देखरेख में बच्चों को सिखाना होगा) इसके लिए माता-पिता के लिए गाइडलाइन्स जारी की जाएगी।

3. शिक्षा का प्रारूप जो अबतक 10+2+3 है यानी पहले 10वीं तक की पढ़ाई, फिर 12वीं और फिर 3 साल का स्नातक। यह बदलकर 5+3+3+4 हो जाएगा। यह कक्षा नहीं बल्कि उम्र को दर्शाता है।
5- (3 से 8 वर्ष) (प्ले स्कूल/आंगनबाड़ी)
3- (8 से 11 वर्ष) (कक्षा 5 तक)
3- (11 से 14 वर्ष) (कक्षा 6 से 8 तक)
4- (14 से 18 वर्ष) ( कक्षा 9वीं से 12वीं तक)

4. कक्षा 6 से ही किताबों के साथ-साथ प्रैक्टिकल नॉलेज भी दिए जाएंगे जिसमें कोडिंग, कम्प्यूटर ग्राफ़िक इत्यादि। इसमें इंटर्नशिप की व्यवस्था भी होगी।

5. कक्षा 9 से 12 तक एक विद्यार्थी अपनी रूचि के कई विषयों को एक साथ पढ़ सकता है जिसमें साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स अथवा मानविकी के विषय एक साथ लिए जा सकेंगे। अभी तक इंटर में 2 साल के लिए किसी एक ही स्ट्रीम के विषयों का विकल्प मिलता था। यह बहुत बड़ा और जरूरी बदलाव है और अन्य देशों में लागू भी है।

6. बोर्ड परीक्षाओं का महत्व कम होगा और इससे जो एक भय की स्थिति बच्चों के अंदर पनपती थी वह खत्म हो जाएगा।

7. बच्चों का मूल्यांकन केवल उनके लाये गए नम्बरों के हिसाब से नहीं बल्कि दूसरे क्रियाकलापों और आचरण आदि के आधार पर भी किया जा सकेगा।

8. बच्चे को नम्बर केवल शिक्षक ही नहीं , बल्कि एक अलग कॉलम में नम्बर वह स्वयं और उसके सहपाठी भी देंगे।

9. स्नातक में भी एक साथ कई विषयों को पढ़ा जा सकेगा।
स्ट्रीम की झंझट खत्म हो जाएगी। यानी अगर आपको अकाउंट्स ऑनर्स करना है और साथ में जूलॉजी और इतिहास पढ़ने में भी रूचि है तो इसके लिए आपको तीन बार ग्रेजुएशन नहीं करना होगा। आप एक साथ इन तीनों विषयों को पढ़ सकते हैं। यह पढ़ने के तरीके को रोचक बनाएगा और जबरदस्ती विषय चुनने की अनिवार्यता खत्म होगी। JNU में ऐसी ही व्यवस्था है।

10. सबसे अहम बदलाव यह कि छात्र ने जितना पढ़ा है उस हिसाब से प्रमाणपत्र दे दिया जाएगा। मसलन जिसने एक साल पूरा किया है ,उसे सर्टिफिकेट, दो साल में डिप्लोमा और तीन साल यानी कोर्स पूरा करने वाले छात्र को डिग्री। यह रोचक और जरूरी है क्योंकि कई कारणों से हमें अपनी पढ़ाई छोड़नी भी पड़ती है और वर्तमान नियम में बिना कोर्स पूरा किये आपको कोई प्रमाणपत्र नहीं मिलता है। इस बदलाव से आपकी मेहनत कभी बेकार नहीं जाएगी।

11. उच्च शिक्षा के लिए एक ही नियामक होगा। देशभर की यूनिवर्सिटी के लिए मानक एक समान होंगे। यानी दिल्ली का DU हो या बिहार का BNMU, दोनों में किसी एक कोर्स के लिए के तरह की पढ़ाई होगी।

12. खराब पढ़ाने वाले शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान होगा तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान न करने वाले शैक्षणिक संस्थान बन्द कर दिए जाएंगे।

कड़क विश्लेषण
             एक शिक्षक के दृष्टिकोण से देखा जाए तो नई शिक्षा नीति, 2020 अबतक चली आ रही शिक्षा व्यवस्था से बिल्कुल अलग है। ऊपर के 12 बिंदुओं से यह हर प्रकार से सकारात्मक ही लगता है। इसमें सारा ध्यान बाल-केंद्रित शिक्षा पर है जिसका प्रावधान NCF 2005 में भी किया गया है। पढ़ाई को बोझिल की बजाय रोचक और हाई स्टैण्डर्ड बनाने की कोशिश है।
           लेकिन क्या ये आदर्श शिक्षा व्यवस्था जमीनी स्तर पर सही ढंग से लागू हो पाएगी? यह कन्फ्यूजन इसलिए क्योंकि नई शिक्षा प्रणाली में शिक्षकों की गुणवत्ता पर ध्यान देने की विशेष जरूरत होगी। साथ ही विद्यालय, आंगनबाड़ी केंद्र जैसे बुनियादी संस्थाओं की गुणवत्ता पर भी ध्यान देना होगा, उनमें पढ़ाने वाले शिक्षक-शिक्षिकाओं को सही ट्रेनिंग भी देनी होगी। बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश जैसे राज्य जहाँ साक्षरता दर देश की औसत दर से भी कम है, वहां के लिए विशेष प्रावधान करने होंगे।
            शिक्षा पर GDP का 6% खर्च करने की बात कही गयी है। शिक्षा के नाम पर जितने खर्च हो रहे हैं वो जमीनी स्तर पर आते-आते क्या रह जाता है यह देखने के लिए आपको विशेष आंकड़ों की जरूरत नहीं है। अपने गांव या कस्बों के अधिकतर विद्यालयों/आंगनबाड़ी केंद्रों में देख सकते हैं कि गुणवत्ता बढ़ाने के नाम पर वहां क्या हो रहा है।
          कुल मिलाकर बात यह है कि NPE 2020, जिसका जिक्र मोदी सरकार के प्रथम चुनाव के घोषणापत्र में ही था, वह लाना वर्तमान शैक्षणिक परिदृश्य में नितांत आवश्यक है लेकिन इसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये व्यापक बदलाव करने की जरूरत है अउ यह बदलाव शून्य स्तर से होनी चाहिए अन्यथा इसके पहले भी कई बदलाव किए गए हैं और स्थिति आज भी वही है जो 80 के दशक में थी।
(- कड़क मिज़ाजी के लिए पूजा मेहता का विश्लेषण)

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10 comments:

  1. मैट्रिक तक बच्चे तथा उसके माँ-बाप बोर्ड परीक्षा के भय से पढ़ते-पढ़ाते हैं,इससे उनमें रटने की प्रवृति का विकास हो जाता है।यह खत्म होना जरूरी है।
    रामकुमार सिंह, स.शिक्षक, उन्नाव, उ.प्र

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    1. Very true Ramkumar Sinha.. Keep reading Kadak Mijaji and stay connected with us. Thankyou

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  2. abhi tak 5+3+3+4 ka matlab nhi samajh me aaya tha. Thankyou Pooja Ma'm for making it understand in this easy way..

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    1. Yes Shweta, Our motto is to provide you only those contents to read which is necessary for you... Keep reading Kadak Mijaji and stay connected with us. Thankyou

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  3. thank u puja mam aapne bht acha likha hai

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    1. Keep reading Kadak Mijaji and stay connected with us. Thankyou

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  4. new education policy me d.l.ed ko khatam kar diya h. teaching training ke liye kya changes h please bataye

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  5. education policy lane se pahle bihar ke 70 percent teachers ko badal dene ki jarurat hai. gdp ka 6% ho ya 60% yelog sb barbaad kar dnege apna pet bharne me

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  6. Bahut kuchh positive hai is policy me. We all know that 100% chije implement nahi ho sakti lekin agar 50% bhi ho jaye to bahut kuchhh sudhar aayega.

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    1. Exactly Manisha Anand ..Keep reading Kadak Mijaji and stay connected with us. Thankyou

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