10 से 15 साल की आयु की लड़की के अंडाशय हर महीने एक विकसित डिम्ब (अण्डा) उत्पन्न करना शुरू कर देते हैं। वह अण्डा अण्डवाहिका नली (फैलोपियन ट्यूव) के द्वारा नीचे जाता है जो कि अंडाशय को गर्भाशय से जोड़ती है। जब अण्डा गर्भाशय में पहुंचता है, उसका अस्तर रक्त और तरल पदार्थ से गाढ़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि यदि अण्डा उर्वरित हो जाए, तो वह बढ़ सके और शिशु के जन्म के लिए उसके स्तर में विकसित हो सके। यदि उस डिम्ब का पुरूष के शुक्राणु से सम्मिलन न हो तो वह स्राव बन जाता है जो कि योनि से निष्कासित हो जाता है।[1] इसी स्राव को मासिक धर्म, पीरियड्स या रजोधर्म या माहवारी (Menstural Cycle or MC) कहते हैं।
अभी 2-4 दिनों पहले अपने कुछ दोस्तों से पुछा की पैडमेन देखने चलोगे। उनका जवाब था.. क्या यार, कौन इस फ़ालतू टॉपिक वाली फिल्म को देखने में पैसे बर्बाद करें। सही बात हैं, सबकी अपनी पसंद होती हो। चूंकि मुझे अक्षय कुमार की फिल्में पसन्द आती हैं इसलिए मैंने इस फिल्म को देखना चाहा।
फिल्मे किस तरह से हमारी सोच को परिवर्तित करती हैं ये मैंने इस फिल्म को देखकर खुद में महसूस किया। मुझे ज्यादा जानकारी तो नही थी, मैं भी इसे आम लोगो की तरह शर्म व प्राइवेट से जुडी चीज़ ही मानता था।
फिल्म देखने के पश्चात सबसे पहले मैंने इसके रिव्यु को जानना चाहा..की लोग कैसे इसपर बात कर रहे हैं और क्या बात कर रहे हैं। उसके बाद मैंने पीरियड्स व मासिक धर्म के बारे में ज्यादा पढ़ना चाहा। और कुछ ऐसी-ऐसी चीज़े पता चली जो शायद ही किसी को पता हो खासकर पुरुष वर्ग को।
मैं यहाँ कोई क्रांति की बात या समाज सुधार की बात नही कर रहा। मैं यहाँ बस समय के साथ मांग व सोच में परिवर्तन की बात कर रहा हूँ। कहने को पीरियड्स नेचुरल हैं, लेकिन सामान्य बिलकुल नही। सामान्य इसलिए नही की विभिन्न जगहों पे इसके प्रति लोगों की मानसिकता बुद्धिहीन व विवेकहीन की तरह हैं। मासिक धर्म के दौरान आप अछूती मानी जाती हैं, आपका स्पर्श नही किया जा सकता, आप खाना नही बना सकती, आप घर के भीतर नही सो सकती। जब मैंने फिल्म में इन सब चीजों को देखा तो मुझे आश्चर्य हुआ..की हमारे क्षेत्रों में तो मुझे ऐसा देखने को कभी नही मिला। लेकिन जब मैंने इसके बारे में पढ़ा और चूंकि यह एक बायोपिक मूवी हैं इसलिए मुझे इस कड़वी सच्चाई को माननी पड़ी।
मैं जानता हूं कि कितनी ही फिल्मे बन जाएं..लेकिन शर्म व लाज हमारे समाज का एक अभिन्न अंग हैं। कुछ हद तक मैं इसे सही भी मानता हूँ, लेकिन जब शर्म..मौत का कारण बन जाएं तो शर्म के घड़े को फोड़ देना ही अच्छा होता हैं। फिल्म में एक डायलॉग हैं " एक औरत ही एक औरत से औरत के समस्या के बारे में ज्यादा अच्छे तरीके से बात कर सकती हैं"। इसलिए लड़को से ज्यादा जरुरत हैं उन लड़कियों को आगे आकर जागरूकता फैलाने की जो इसके बारे में भली-भांति से परिचित हैं। जरूरत हैं शर्म व प्राइवेट की श्रेणी से इसे हटाकर एक सामान्य रोजमर्रा की श्रेणी में रखने की। चूंकि माँ, बहन, बेटी हर किसी के घर हैं और उनकी सुख-सुविधा, उनकी देखभाल, उनकी जरुरत का एहसास तो हमें होना ही चाहिए। पूरी ज़िन्दगी वे हमारे लिए किसी न किसी रूप में त्याग करती हैं..बस यहां हमें पहली बार अपने शर्म का त्याग करना पड़ेगा, ताकि वो शर्म उनकी बीमारी व मौत का कारण न बन पाए।
और अंत में एक कविता,
दया आती है मुझे तुमपर, तुम्हारी सोच पर,
तुम्हारे धर्म पर, ऐसे रीति रिवाज़ों पर।
दया आती है मुझे तुम्हारे दिखावेपन पर,
ओछे आदर्शों पर, झूठे शान पर।
अपने स्वार्थ के लिए स्त्री का सम्मान
क्यो करते हो दिखावे के लिए स्त्री का सम्मान
तुम्हे कोई हक़ नही मेरी खुशी मे शामिल होने का
क्योंकि मेरे दर्द मे तुम भागीदार नहीं।
तुम्हे कोई हक़ नहीं मुझे छूने का
क्योंकि मेरी मुश्किल घड़ी को ' उन दिनों ' कहने का तुम्हे कोई हक़ नहीं।
क्यो शर्माएं हम इसके होने से ये हमारा कसूर नहीं।
कुदरत ने बनाया है ये नियम, इसे गंदगी बोल, तुम भी बेकसूर नहीं।
क्यों बीमार कहते हो हमें, जब तुम खुद मानसिक बीमार हो।
क्यों रोकते हो हमें पूजा करने से, रसोई मे जाने से य कुछ भी करने से, बस तुम्ही इसके कसूरवार हो।
सिर्फ tv पर सोच बदलने से कुछ न होगा,
अपने अंदर की गंदगी साफ करो।
क्यों छिपाकर खरीदती हूँ मैं सामान अपने कभी सोच है तुमने,
मुझे शर्म नहीं बस भय है तुम्हारी हैवानियत का,
ज़रा कुछ तो खुद मे बदलाव करो।
तुम्हारा नज़रिया, तुम्हारे comments, मुझे झझकोरते नहीं,
ये तो तुम्हारे संस्कार हैं।
मैं तो आज़ाद पंछी हूँ, उडूंगी, उड़ती रहूंगी, यही मेरी पहचान है।
एक वीर ने कहा था- "तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा"|
मैंने तो 12 साल की उम्र से खून दिया है,
पर फिर भी क्यों मैं आज़ाद नहीं।
तक़लीफ़ हमे होती है, नियम तुम क्यों बनाओगे।
सहन हमे करना है तो अंदाज़ा तुम क्यों लगाओगे।
हमे ज़रूरत नहीं तुम्हारे अहसानो की, अपना मुकाम हम खुद पाएंगे।
बस रुकावट मत बनो हमारे रास्ते की,
अपनी राह हम खुद बनाएंगे।
अपनी राह हम खुद बनाएंगे।
आपको कैसा लगा ये लेख हमे जरूर बताएं, kadakmijaji@gmail.com पर।
बहुत अच्छा
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