"प्रेम करती हुई लड़कियां" -(कविता)
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डरपोक होता है हजारों लाखों की भीड़
खुद में समा लेने वाला ये समाज,
इस विशाल स्वरूप के पीछे,
चेहरा छुपाए , सहमा हुआ होता है ये समाज,
जो सबसे अधिक डरता है,
प्रेम करती हुई लड़कियों से।।
उन लड़कियों से,
जो इसके तय कायदे तोड़ती हैं,
और उड़ जाती हैं आसमां में,
आजाद कोयल की तरह।।
उड़ना उनकी ख्वाहिश भी होती है ,
मजबूरी और आखिरी विकल्प भी,
क्योंकि वो उड़ेंगी नहीं,
तो क़तर दी जाएंगी,
कहीं ब्याह दी जाएंगी,
कहीं बेच दी जाएंगी,
या तबाह हो जाएंगी खाप पंचायतों के फरमान से।।
जिस वक्त तय करता है, ये समाज,
उनका यौवन,
वो कर चुकी होती है कूच,
अपने पहले प्रेम की ओर,
वो स्कूल से सीधा घर तो आती हैं ,
पर बाईपास होकर,
नोट्स और नोट्स के अंदर आदान-प्रदान कर कर।।
वो जो निकलती हैं,
अपनी डाली वाली साइकिल पर चढ़कर,
जल जाता है ये समाज,
उनके ताजे परों को देखकर,
वो लड़कियों के ठहाकों की आवाज़ तय करता है,
कभी-कभी तो बैठने उठने के लहजे भी तय करता है,
बस जो निश्चित नहीं कर पाता है,
वो है उनकी आजादी।।
14 की होने पर वो बेसब्री से करती हैं ,
बोर्ड परीक्षाओं का इंतजार,
फिर कुछ ब्याह दी जाती हैं ,
कुछ शहर को जाती हैं ,
कुछ हो जाती हैं फरार ,
पर फरार शब्द तो समाज को चुभता है,
वो जलता है,
चीखता है,
पर कुछ नहीं कर पाता ,
क्योंकि वो सबसे अधिक डरता है,
प्रेम करती हुई लड़कियों से
वो डरता है उन लड़कियों से भी,
जो लड़को को लड़का बनाती हैं,
उन्हें प्रेम करना सिखाती हैं,
गुंडे मवाली बनने से बचाती हैं,
वो डरता है कि कही ये नारीप्रधान दिखने वाला,
पितृसत्तात्मक समाज ,
सच में नारीप्रधान न बन जाए,
उनकी कोमलता, उनकी सोच, उनके फैसले,
कही उनके न हो जाए।
ये लड़कियां ही उनकी सत्ता गिराएगी,
ये लड़कियां ही उनका आडंबर पिघलाएंगी,
इसलिए वो डरता है इन लड़कियों से
इसलिए वो सबसे अधिक डरता है
"प्रेम करती हुई लड़कियों से"
"प्रेम करती हुई लड़कियों से।।"
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