17 जून...न कोई त्यौहार है आज, न कुछ विशेष, न कॉलेज की छुट्टी है, न ही काम से मुक्ति है..फिर भी आज का दिन बहुत खास है। क्योंकि आज है पिताओं का दिन..फादर्स डे।
मुझे याद है मेरे पापा मेरा जन्मदिन कभी नहीं भूले और हर उस जन्मदिन पे, मैंने जो चाहा वो मिला। लेकिन मैं दुविधा में हूं कि क्या आज के दिन मैं उन्हें कुछ दे सकता हूँ। क्या मेरी दी हुई कोई चीज़ उन्हें ख़ुशी से भर सकती है। उनके चेहरे पे जो शिकन रहती है क्या वो किसी दी हुई चीज़ से दूर हो सकती हैं??
लेकिन मैं इतना बड़ा तो नहीं हुआ हूं की उनको कुछ दे सकू। तो फिर क्या दिया मैंने??
मैंने दिया है अपने पापा को उम्मीद की जिस तरह बचपन में आपने मेरी ऊँगली पकड़कर मुझे चलना सिखाया था, वक़्त आने पर मैं आपका सहारा बनने में कभी नहीं पीछे हटूंगा। मैंने दिया उन्हें विश्वास की आपके सर को कभी झुकने नहीं दूंगा। मैंने दी उन्हें हिम्मत, किसी परिस्थिति में आपके साथ सदैव खड़ा रहूँगा।
भले ही पापा एक मां की तरह अपने कोख से बच्चे को जन्म न दे पाएं। अपना दूध न पिला पाएं। अक्सर ही माँ की ममता के आगे पिता के प्यार को नजरअंदाज किया जाता है। लेकिन यकीन मानिए वो पापा ही है जो अपने खून से सींचते है हमें। एक पिता जो कभी मां का प्यार देते हैं तो कभी शिक्षक बनकर गलतियां बताते हैं तो कभी दोस्त बनकर कहते हैं कि 'मैं तुम्हारे साथ हूं'. इसलिए मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं कि पिता वो कवच हैं जिनकी सुरक्षा में रहते हुए हम अपने जीवन को एक दिशा देने की सार्थक कोशिश करते हैं. कई बार तो हमें एहसास भी नहीं होता कि हमारी सुविधाओं के लिए हमारे पिता ने कहाँ से और कैसे व्यवस्था की होती है. यह तब समझ आता है, जब कोई बालक पहले किशोर और फिर पिता बनता है।
बचपन से अपने बच्चे को दुलारते और सहलाते हुए बड़ा करने वाली मां का प्यार जगजाहिर हो जाता है। इसके ठीक विपरीत पिता का प्यार आंखों से दिखाई नहीं पड़ता। उसे दिल के अंदर अहसास ही करना पड़ता है। एक पिता की विवशता जब बच्चे की इच्छा पूरी नहीं कर पाती है, तब उसका दिल और आत्मा किस प्रकार तड़पती और आंसू बहाती है, उसे केवल वही बयां कर सकता है। बंद कमरे की दीवारें पिता के दुख की सबसे बड़ी गवाह होती है। वह परिजनों के सामने अपनी विवशता को बयां नहीं करता। कारण यह कि बच्चों की इच्छा कहीं अपने दम न तोड़ दें, वह उसे पूरा करने जतन करने लगता है। अपने बच्चों सहित पत्नी की इच्छा को पूरा करने पर उसे जो आनंद मिलता है, वह उसे भी बाहर नहीं आने देता। एक पिता का इस तरह का प्रबंधन पूरे असीम खुशियां प्रदान करने में सफल हो ही जाता है, भले ही देर से। एक पिता के स्नेह में इतनी ताकत और सामर्थ्य होता है कि वह अपने बच्चों की ओर देखकर ही समझ सकता है कि उसे किस चीज की जरूरत है। खुद एक पिता का अतीत कितना ही काला क्यों न रहा हो, वह हर परिस्थिति में अपने बच्चों को जीवन की उज्ज्वल राहें प्रदान करना चाहता है। एक बात तो पूरी दुनिया को माननी पड़ेगी कि पिता के प्यार को दौलत और ऐशो-आराम की दुनिया से नहीं तौला जा सकता। दुनिया की शुमार दौलतें तराजू के एक पल्ले में भर दी जाएं तब भी तब भी वह पिता के प्यार से भारी नहीं हो सकता। अपने बच्चे को खुशियां देने के लिए एक पिता दिन-रात खटता रहता है। इसके बाद भी उसे थकान का अनुभव न होना उसकी जीवटता का उदाहरण ही हो सकता है। अपने बच्चों के चेहरों पर खुशी की झलक देख पिता की सारी थकान फुर्र हो जाती है।
एक पिता के किन-किन त्याग और बलिदान का वर्णन करूं, मैं स्वयं समझ नहीं पा रहा हूं। मैंने हिंदी शब्द कोष में ऐसा शब्द ढूंढने का असफल प्रयास किया, जो मुझे इस रिश्ते की गंभीरता और गहराई को समझा सके। यकीन मानिये पूरे शब्द कोष में ऐसा कोई शब्द नहीं मिला जो पिता की अहमियत से बढ़क़र हो। यह एक ऐसा रिश्ता है जिसे महसूस करते हुए उसके अंदर छिपी त्याग की भावना को समझना कठिन ही नहीं, वरन असंभव प्रतीत होता है। याद रखे उस पिता के कमजोर हाथों को थामकर कभी बुढ़ापे की डगर पर वृद्धाश्रम की ओर कदम न बढ़ाना। जिसने हमें अपने हाथों में थामकर कठिन डगर पर चलना सिखाया हो, उन हाथों के कांपने वाली उम्र पर अपने हाथों से निवाला खिलाना और यह अहसास कराना कि हमारे हाथों में ही उनकी शक्ति है, कहीं न कहीं उन्हें जीवन की रौशनी अवश्य दिखाएगा।
जाहिर है, अपने बच्चे के लिए तमाम कठिनाईयों के बाद भी पिता के चेहरे पर कभी शिकन नहीं आती. शायद इसीलिए कहते हैं कि पिता ईश्वर का रूप होते हैं,
उनके त्याग और परिश्रम को चुकाया नहीं जा सकता, लेकिन कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं कि उनके प्रति 'कृतज्ञ' व 'ईमानदार' बने रहे।
ये महज़ शब्द नहीं हैं। बहुत कुछ है ये। चंद शब्दों से संसार के हर पिता की संतान के आरती और संतानों की हर पिता से जुड़ी भावनाओं का सार है। बहुत बहुत शुक्रिया गुंजन, अमन, इसी तरह लिखते रहो और लोगों तक इस तरह की बातें फैला कर कलियुग में लोगों के दिलों में ऐसी भावनाएं जिंदा रखो। इस पेज पे समय 'नष्ट' करना अच्छा लगता है। मैं जल्दी किसी पेज को open नहीं करता हूँ लेकिन यहां के सारे posts हमारे अंतर्मन से जुड़ा है, इसी तरह लिखते रहा।
ReplyDeleteJune 17, 2018 at 12:32 PM
ReplyDeleteये महज़ शब्द नहीं हैं। बहुत कुछ है ये। चंद शब्दों से संसार के हर पिता की संतान के प्रति और संतानों की हर पिता से जुड़ी भावनाओं का सार है। बहुत बहुत शुक्रिया गुंजन, अमन, इसी तरह लिखते रहो और लोगों तक इस तरह की बातें फैला कर कलियुग में लोगों के दिलों में ऐसी भावनाएं जिंदा रखो। इस पेज पे समय 'नष्ट' करना अच्छा लगता है। मैं जल्दी किसी पेज को open नहीं करता हूँ लेकिन यहां के सारे posts हमारे अंतर्मन से जुड़ा है, इसी तरह लिखते रहो।