हमारे तरफ आज भी बच्चे जब पढ़ाई की शुरुआत करते है तो उन्हें तीन चीजें खरीद कर दे दी जाती है। हिंदी वर्णमाला सीखने के लिए "मनोहर पोथी" अंग्रेज़ी अल्फाबेट्स सीखने के लिए "गुड इंग्लिश" व अपने भाग्य की रेखाओं का प्रारंभ करने के लिए "स्लेट"। वहाँ से दुनिया को जानने का सिलसिला प्रारंभ होता है और यह तब तक चलता रहता है जबतक किताबें हमारी दोस्त बनी रहती है।
पापा का किताबों का कारोबार होने के चलते ही किताबो के महक की आदत बचपन से ही हो गयी। नई - नई किताबें को पढ़ना उस समय बाद दिलचस्प लगता था। हिंदीभाषी किताबें खुद से जोड़ने का काम करती थी, इसलिए हिंदी से प्रेम हो गया। पंचतंत्र की कथा, विक्रम बेताल की कहानी व क्रिकेट सम्राट जैसी पुस्तके बचपन में मेरी पसंदीदा पुस्तके थी। पापा की दुकान में ही है बैठकर उसे पढ़ता रहता था। दिक्कत तब हो गयी जब पापा ने एक दिन वात्सायन की "कामसूत्र" को पलटते देख लिया। लेकिन मेरी नासमझी समझकर उन्होंने इस किताब को बस अलग रख दिया। इसे मुझसे छीन कर अलग रखने की वजह कुछ सालों बाद मेरी समझ में आयी।
वक़्त बीता और समय आ गया ज्ञानवर्धक किताबों को। ज्ञानवर्धक किताबे वैसे तो ज्यादा रोचक नही होती, लेकिन दुनिया में घटित हो चुकी या हो रही चीज़ों को जानने का बेहतर माध्यम होती है। फिर चाहे वह इतिहास -भूगोल की पुस्तकें पढ़कर जानी जाएं या फिर विज्ञान की पुस्तकें। वास्तविक ज्ञान तो इन्ही पुस्तको को पढ़ने के दौरान प्राप्त होता है। फिर प्रतियोगी परीक्षा के दौरान पुस्तक के हर शब्द - हर वाक्य की गहराई में उतरता गया। लेकिन वक़्त के अभाव में कभी पाठ्यक्रम से हटकर कुछ अलग पढ़ने का सौभाग्य ज्यादा प्राप्त नही हुआ। लेकिन पुस्तक पढ़ने का सिलसिला जारी रहा।
इंटरनेट, मोबाईल, यूट्यूब ने जरूर काफी चीज़े आसान की है, लेकिन पुस्तको को प्रतिस्थापित करने का सामर्थ्य इनमें नही। आज पीडीएफ या वीडियो के माध्यम से जानकारी प्राप्त करना आसान हो गया है, लेकिन पुस्तक पढ़ने के दौरान का प्राकृतिक आनंद इनमें मौजूद नही। कई ऐसे लेखकों के पुस्तक पढ़ने का मुझे बेसब्री से इंतजार है। इस इंतजार के दौरान कई बार उनकी पुस्तक का पीडीएफ वर्शन मेरे सामने आया हैं। लेकिन यह आपको उस परमानंद से दूर ले जाता है जिसके लिए लेखक बड़ी मेहनत से अपने शब्दों को कागज़ पर संजोता है।
लेखक पैसा का नही अपितु समीक्षा व सराहना का भूखा होता है। आलोचना भी वह स्वीकार करता है बशर्ते आप उसकी पुस्तक को पढ़कर उसे जीने की कोशिश करे। न पसंद आये तो छोड़ दे, लेकिन उसकी ओरिजिनल पुस्तक पढ़े। पुस्तकों के अस्तित्व को अबतक जीवित रखने में इन लेखकों का बहुत बड़ा योगदान हैं।
आने वाला पूरा भविष्य आज की नई पीढ़ी पर निर्भर हैं। बच्चों को टेक्नोलॉजी से तालमेल बिठाना जरूर सिखाये, लेकिन उन्हें पुस्तको की अहमियत का एहसास होने दें। गैजेट की इस दुनिया में कही आपके बच्चे रोबोट न बन जाये, इसलिए यह जरूरी है कि पुस्तको को वह अपना दोस्त बनाएं। यकीन मानिए आने वाली दुनिया का पूरा भविष्य पुस्तकों से ही तय होने वाला है।
विश्व पुस्तक दिवस के मौके पर आप भी अपनी कुछ चुनिंदा पुस्तकों के नाम जरूर बताएं।
- आशीष झा