उन दिनों दोपहर की गर्मी में, मैं और मेरा भाई..माँ के सो जाने पर आहिस्ता से गेट खोलकर क्रिकेट खेलने निकल जाते थे। क्रिकेट खेलने का भूत सवार था हमपर। माँ अगर गलती से उठ जाती, तो हमारे बैट से ही पीटते हुए हमें घर वापस लाती थी।
ऐसा नही था कि हमारे क्रिकेट खेलने से माँ को कोई आपत्ति थी, बस खेलने का समय उचित हो यह माँ का कहना था। लेकिन हम फिर भी नही मानते थे.. चोरी-छिपे निकलते थे, माँ उठती थी, हम पिटते थे, घर वापस आते थे। किसी दिन माँ गहरी नींद में पड़ जाए तो बहनें विभीषण की भूमिका अदा करती थी। यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा।
शैतानियां जब बढ़ गयी, तो बात पापा तक पहुंच गई। 90s में पैदा हुए हम बच्चों में पापा का एक अलग ही भौकाल रहता था। उनकी कही गयी हर बात, हमारे लिए ब्रम्हवाक्य होती थी। पापा ने कहा, कल से अगर मैंने तुमदोनो की शिकायत सुनी..तो तुमलोग अच्छी तरह जानते हो तुम्हारे साथ क्या होगा। हमें समझ नही आया कि ये चेतवानी थी या धमकी। समझ के भी क्या उखाड़ लेते..हमारे बाप थे वो।
इसी को ध्यान में रखकर घर में एक लूडो लाया गया। अब घर में भी टाइमपास होने का एक जरिया हो गया था। हमनें भरी दोपहरी में बाहर जाना छोड़ दिया, और घर में ही सभी भाई-बहन लूडो खेलने लगे। हालांकि लूडो एक सामान्य सा इंडोर गेम है, जिसके नियम/कायदे भी बेहद ही सामान्य है। लेकिन पता नही क्यों, हमनें कुछ अपने अलग ही नियम जोड़ रखे थे।
जैसे कि खेल प्रारम्भ में सबको छह लाने के लिए तीन मौके मिलते थे..पहले खाने, चौथे खाने व घर घुसने से 2-3 खाने पहले तीर का निशान होता था। जोकि शायद दिशा दर्शाने के लिए मौजूद रहते थे...लेकिन हमारे द्वारा उसका अर्थ यह था कि तीर पर आते ही लूडो की गोटी स्वतः ही आगे बढ़ा दी जाएगी। लगातार तीन छह आते ही वह तीनो छह अमान्य हो जाते थे।
कभी कभी लड़ झगड़कर अपनी चाल वापस भी कर लेते थे। जिसके पास जिस हिसाब की अक्ल थी, वह उस हिसाब से चीटिंग भी करता था। लूडो की कोई गोटी अगर खो जाती थी, तो हम उसे स्वयं ही अपनी कला द्वारा जीवित करते थे। सीधे शब्दों में गर कहा जाए तो उस समय हम अपने बचपन को पूर्णतः जी रहे थे, और उसी का परिणाम है कि यह यादें आज भी हमारे जेहन में ताजा है।
आज मोबाईल पर खेला जाने वाला लूडो गेम बेहद लोकप्रिय है। निःसंदेह खेलने में आनंद भी आता है।
लेकिन वह मासूमियत, वह झगड़े, वह भोलापन, वह चतुराई, वह बचपन लौटाने की क्षमता इन वर्चुअल गेम्स में मौजूद नही।
- आशीष झा
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