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Tuesday, April 21, 2020

कई बार पंकज को सुनकर लगता है, ये तो मेरे जैसे ही हैं


पंकज त्रिपाठी को सुनना हमेशा सुकून देता है। कुछ लोग अपने अतीत को कभी नहीं भूलते। अतीत की संवेदनाओं को महसूस करते हुए एक असाधारण मनुष्य में साधारण मनुष्य को जिंदा रखते हैं। हां, कुछ लोग अपनी मिट्टी को साथ लेकर चलते हैं और अपनी स्मृतियों में उसे जिंदा रखते हैं।

गांव के बूढ़े काका, लेमनचूस बेच रही वो महिला, जिसके साड़ी का पल्लू सर पर नहीं है। उसने घंटो से उसे पंखा बना लिया है या फिर वो बच्चा जो अपने आम के पेड़ से बंदर को भगा रहा है। सब लोग जिंदा हैं उसके आस-पास के लोगों में। 
आप उन्हें दुनिया के किसी भी कोने में रख दीजिए लेकिन आप उनके मूल को नहीं बदल सकते हैं। दुनिया के हरेक कोने में भावनाओं का हिसाब-किताब एक ही है। बस मौसम का हेर-फेर है।

बोलते हुए पंकज को सुनने पर लगता है कि यह तो बिल्कुल मेरे जैसा है। जिसके बचपन का सपना था कि उसे एक टैक्सी ड्राइवर बन जाना है या फिर उसे ट्रैक्टर चलाना है। उसे पिता के तरह किसान बन जाना है या फिर एक मास्टर।

पिता उसे कुछ और बना देना चाहते हैं। कुछ ऐसा जिसमें उनके संघर्ष से थोड़ा कम संघर्ष हो। और इन्हीं सपनों के संघर्ष में तपते-तपते वह एक दिन खुद को पा लेता है।

जिंदाबाद पंकज

-कड़क साथी, देवपालिक गुप्ता की तरफ से पंकज त्रिपाठी के लिए।
-जाते-जाते ये स्लो इंटरव्यू देखते जाइए, यहां कोई शोर-शराबा नहीं मिलेगा। आसान सी ज़िदादिल इंसान की धीमी बातें मिलेंगी।


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