(आरक्षण पर बातचीत के कई ऐसे प्रश्न हैं जो अक्सर हमें सुनने को मिलते हैं। इस लेख के माध्यम से उन प्रश्नों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश की गई है।)
*आरक्षण आर्थिक आधार पर मिलना चाहिए सवर्ण भी तो गरीब हैं…
*आरक्षण आर्थिक आधार पर मिलना चाहिए सवर्ण भी तो गरीब हैं…
आरक्षण, गरीबी हटाओ कार्यक्रम नहीं है या फिर बेरोजगारी खत्म करने का प्लान नहीं है. सबको बराबर का प्रतिनिधित्व मिले इसलिए आरक्षण का प्रावधान है. आरक्षण हिस्सेदारी बढ़ाने का कार्यक्रम है.
(वह वर्ग जो लंबे समय से सामाजिक रूप से पिछड़े हैं, जिनके साथ भेदभाव हुआ है आरक्षण उन्हें मुख्यधारा में लाने का एक जरिया है.) दुनिया भर में जहां भी आरक्षण मिलता है लगभग सभी जगह आरक्षण का उद्देश्य यही है. जनतंत्र का मतलब ही सबको भागीदारी देना है.
*सवर्ण भी तो गरीब हैं
गरीबी हर जगह है. यह बात आरक्षण के समर्थक भी कहते हैं. और यह सच भी है. गरीब बच्चों के लिए सरकारों को स्कॉलरशिप देने की जरूरत है.
एक सवर्ण के घर पैसा भले न हो लेकिन सोशल कैपिटल, कल्चरल कैपिटल जरूर होगा. मतलब पढ़ाई का महत्व उसके घरवालों को पता है. ( एक आंकड़े के मुताबिक गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले ब्राह्मणों में 40 फीसदी ऐसे लोग हैं जिनके घर एक या एक से अधिक लोग बारहवीं पास हैं. जबकि दलितों में यह संख्या मात्र 12 फीसदी है.)
( एक और आंकडे से समझते हैं- देश में सवर्ण हिंदू 20 फीसदी के करीब हैं, एनएसएसओ के मुताबिक केवल मेडिकल की शिक्षा में 67 फीसदी इनकी भागीदारी है. लगभग यही आंकड़ा हर जगह है. सीएसडीएस के आंकडे के मुताबिक अंग्रेजी प्रिंट मीडिया में 90 फीसदी निर्णायक पदों पर उच्च जाति के लोग हैं. इसी के आस-पास लगभग और मीडिया के माध्यमों में भी हैं. यही मामला लगभग न्यायालय का भी है)
जब बच्चा कहता है कि पढ़ने में मन नहीं लगता तो ऊंची जाति के घर वाले ये नहीं कहते कि ठीक है छोड़ दे पढ़ाई कर ले कोई काम. उसे डांटते हैं कि पढ़ ले नहीं तो जीवन बर्बाद हो जाएगा.
इसके ठीक विपरीत दलितों के साथ है. आरक्षण का लाभ लेने के लिए दलित को कम से कम दसवीं पास होना आवश्यक है. एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक लगभग 72 फीसदी दलित दसवीं पास करने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं. 2001 के जनगणना के अनुसार केवल 2.24 प्रतिशत दलित ही स्नातक हैं.
*तो क्या आरक्षण से दलितों का सामाजिक स्तर सुधर जाएगा ....
नहीं. यह पर्याप्त नहीं है. यह बस एक छोटा जरिया है. क्योंकि दलितों ने भेदभाव सहा है औऱ सह रहे हैं. इसलिए आरक्षण देना एक छोटा लेकिन बेहतर उपाय है. बाकी मुख्यधारा से जोड़ने के ब्लॉक स्तर पर ही स्कूल-हॉस्टल खोलने की जरूरत है. उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाने के लिए आर्थिक संपन्नता न होने की वजह से अधिकांशतः दलित पढ़ाई छोड़ देते हैं.
*सभी आरक्षण क्यों पाना चाहते हैं..
जाट आंदोलन, पाटीदार आंदोलन यह सब आरक्षण के लिए हुए. गैर सरकारी नौकरियों की हालत देखकर सभी सरकारी नौकरी में आना चाहते हैं. देश का एक बड़ा हिस्सा गैर सरकारी नौकरियों में है. देश के बड़े हिस्से को जो नौकरी दे रहा है उसके बेहतरी पर कोई बात नहीं करता.
गैर सरकारी नौकरी में जॉब सिक्योरिटी नहीं है. जब मालिक का मन हुआ तब नौकरी से निकाल दिया. कोई भविष्य के लिए प्लान नहीं है. नौकरी में जरूरत से ज्यादा प्रेशर है. काम की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है. और इन सब के पीछे श्रम कानून का मजबूत न होना है.
आर्थिक उदारीकरण के बाद सरकारी नौकरियों में लगातार गिरावट हो रही है. जो नौकरी देने का बड़ा जरिया है. वो लोगों से जानवरों की तरह काम ले रहा है.
जाट आंदोलन, पाटीदार आंदोलन यह सब आरक्षण के लिए हुए. गैर सरकारी नौकरियों की हालत देखकर सभी सरकारी नौकरी में आना चाहते हैं. देश का एक बड़ा हिस्सा गैर सरकारी नौकरियों में है. देश के बड़े हिस्से को जो नौकरी दे रहा है उसके बेहतरी पर कोई बात नहीं करता.
गैर सरकारी नौकरी में जॉब सिक्योरिटी नहीं है. जब मालिक का मन हुआ तब नौकरी से निकाल दिया. कोई भविष्य के लिए प्लान नहीं है. नौकरी में जरूरत से ज्यादा प्रेशर है. काम की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है. और इन सब के पीछे श्रम कानून का मजबूत न होना है.
आर्थिक उदारीकरण के बाद सरकारी नौकरियों में लगातार गिरावट हो रही है. जो नौकरी देने का बड़ा जरिया है. वो लोगों से जानवरों की तरह काम ले रहा है.
*तो फिर उन दलितों का क्या जिनका सोशल औऱ कल्चर कैपिटल मजबूत हो गया है....
इस पर लोग टीना डाबी का उदाहरण देते हैं. और पिछले दो-तीन सालों से लोगों के पास आरक्षण का विरोध करने का यह एक मजबूत जरिया मिल गया है. हमारे पास जब विरोध करने का कोई ठोस जरिया नहीं होता है. तो हम अपवादों का सहारा लेते हैं.
हां ये जरूर है कि जिनके मां-बाप आरक्षण पा चुके हैं उनके संतानों को उस कैटेगरी की नौकरी में सबसे पिछे खड़ा करना चाहिए.
*अब मेरिट का सवाल ...
आरक्षण फिल्म का सैफ अली खान वाला वो हिस्सा सुन लीजिएगा. जहां वो मेरिट के सवाल पर प्रतीक बब्बर को जवाब देते हैं.
मतलब एक दौड़ के लिए कोई घर से ही दौड़ते हुए आ रहा है. और दूसरा स्टार्टिंग प्वॉइंट से अपना दौड़ शुरू कर रहा है. ये रहा वीडियो.
आरक्षण फिल्म का सैफ अली खान वाला वो हिस्सा सुन लीजिएगा. जहां वो मेरिट के सवाल पर प्रतीक बब्बर को जवाब देते हैं.
मतलब एक दौड़ के लिए कोई घर से ही दौड़ते हुए आ रहा है. और दूसरा स्टार्टिंग प्वॉइंट से अपना दौड़ शुरू कर रहा है. ये रहा वीडियो.
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