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Wednesday, May 27, 2020

इस बुलंद भारत के तस्वीर की रूपरेखा चाचा ने ही तो तैयार की थी।


15 अगस्त 1947 को देश को आज़ादी तो मिली, लेकिन इस आज़ादी की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत के पंख नुच चुके थे। सिर्फ उसका फड़फड़ाता हुआ पिंजर बचा था। बँटवारे की भीषण त्रासदी के कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त था, आर्थिक तंगहाली का बोलबाला था। 

राजा महाराजा को यह बात जम नही रही थी कि उनसे नीचे तबके के लोग, जो कल तक उनकी जी हुज़ूरी कर रहे थे..अधिकारो व हक़ के मामले में उनके बराबर हो जाएँगे। अंग्रेज़ हममें अविश्वास की भावना जताकर जा चुके थे। देश को संघटित व एकजुट करने को लेकर सत्ता में आए लोगों के सामने बहुत बड़ी समस्या थी। उस वक़्त चचा ने देश की बागडोर संभाली। 

भले ही ज़्यादातर लोगों द्वारा प्रधानमंत्री के रूप में पटेल को चुनने की बात सामने आती है, लेकिन क्या फर्क पड़ता था..मुद्दा उस वक़्त केवल सत्ता लोभ की राजनीति का नही बल्कि राष्ट्र निर्माण के कार्य में एकजुट होकर देश को गति प्रदान करना था। पुराने समय को पीछे छोड़कर नए समय की ओर जाना था। भारतवर्ष जैसे महान देश में एक नए युग का आरंभ करने की प्रक्रिया को लेकर हमने चचा को अपना नेता चुन लिया था।

अंग्रेज़ो के शोषण व लूटपाट, द्वितीय विश्वयुद्ध की मार झेल रही अर्थव्यवस्था और खून से लहूलुहान विभाजित भारत का नवनिर्माण कोई आसान कार्य नही था। एक मजबूत लोकतंत्र की नींव  बरकरार रखने की भी चचा के सामने बहुत बड़ी चुनौती थी। चचा की नेतृत्वक्षमता व दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि हम लगातार सकारत्मक दिशा की ओर आगे बढ़ रहे थे।

कोई मजबूत मकान तब आपदाओं को झेल पाता है जब उसकी नींव मजबूत डाली गई हो। भारत ने न जाने कितने ही आपदाओं को झेल यह बुलंदी हासिल की है। आज बुलंद भारत की इस तस्वीर का खाँचा तैयार करने का श्रेय बहुत हद तक चचा को भी जाता है।

शायद आप या मैं भी चचा से या उनकी नीतियों व कार्यों से पूर्णतः संतुष्ट न हो..लेकिन चचा का व्यक्तित्व इतना तो सरल व सौम्य था, जो उन्हें आज के दौर के नेताओं की परिभाषा से अलग बनाता है। मैं चचा का न तो कायल हूँ और न ही अनुयायी। मैं उस खूबसूरत भारत का एक अदना सा नागरिक हूँ..जिसकी रूपरेखा चचा ने तैयार की। अपने जीवन के 17 वर्ष देश को प्रबंधित करने वाले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री को एक डिफ़ॉल्ट सम्मान तो मिलना ही चाहिए।

पुण्यतिथि पे नमन

-आशीष झा

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2 comments:

  1. दिवाकर चौहानMay 27, 2020 at 4:55 PM

    ये वही चचा हैं न जिनके कपड़े विदेश से धुल के आते थे? और उनकी पार्टी आज विदेश से भारतीयों के आने पर हाय-तौबा मचा रही है....

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  2. चाचा जो भी थे पर वर्तमान पार्टी और परिवार की नीयत ठीक नहीं।

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