विभाग ने कहा, ‘जहां से ट्रेन शुरू होगी, उस राज्य को ट्रेन में यात्रा करने वाले लोगों की संख्या रेलवे को बतानी होगी, जो कि श्रमिक स्पेशल ट्रेन की क्षमता को देखते हुए लगभग 1200 (कम से कम 90 फीसदी) होनी चाहिए. इसके बाद रेलवे गंतव्य स्थान के लिए सभी यात्रियों का टिकट काटकर स्थानीय राज्य सरकार प्रशासन को दे देगा।’
इसमें आगे कहा गया, ‘स्थानीय राज्य सरकार प्रशासन ये टिकट यात्रियों को दे देंगे और उनसे इसका कराया वसूल कर पूरी राशि वापस रेलवे में जमा करा देंगे।' इसके अलावा जहां से गाड़ी शुरू होगी वहां पर राज्य सरकार लोगों को फूड पैकेट्स और पानी मुहैया कराएगी। 12 घंटे से अधिक की यात्रा के लिए रेलवे ट्रेन में एक टाइम का भोजन प्रदान करेगा।
सरकार की घोषणा के बाद बीते शुक्रवार को पांच और शनिवार को 10 श्रमिक ट्रेन चलाए गए। हालांकि इसे लेकर उस समय विवाद खड़ा हो गए जब यात्रियों ने कहा कि इस महामारी के समय में भी उनसे किराया वसूला जा रहा है, जबकि लॉकडाउन में फंसे रहने के कारण उनमें इस राशि का भुगतान करने की क्षमता नहीं है।
इस तरह के ज्यादातर मामले बिहार से आए, जिसे लेकर बाद में राज्य सरकार ने सफाई दी कि चूंकि केंद्र की गाइडलाइन में ही किराया वसूलने की बात की गई है इसलिए उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है।
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक श्रमिक ट्रेन चलाने की इजाजत देने के बाद रेलने ने बीते शुक्रवार को कहा था कि वे यात्रियों से स्लीपर क्लास का किराया और अतिरिक्त 50 रुपये लेंगे. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि राज्य अगर चाहें तो वे कोऑर्डिनेट करके यात्रियों की जगह पर खुद भुगतान कर सकते हैं।
रेलवे ने कहा कि इन ट्रेनों से सिर्फ वे लोग ही यात्रा कर सकते हैं जिन्हें भेजने और आगमन वाले राज्यों से इजाजत मिली हुई है। ये ट्रेन आम यात्रियों के लिए नहीं है. मंत्रालय ने कहा कि यदि सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया जाता है तो रेलवे के पास अधिकार है कि वे इन ट्रेनों की आवाजाही रोक दें।
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