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Thursday, May 7, 2020

एक-दूसरे के आलोचक 'गुरुदेव' रबीन्द्रनाथ टैगोर और 'महात्मा' गाँधी


रबीन्द्रनाथ टैगोर एशिया के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता, राष्ट्रगान के रचयिता, भारत के सबसे प्रसिद्ध विद्वानों में से एक थे तो वहीं महात्मा गांधी 20 वीं सदी के सबसे प्रभावशाली महापुरुषों में से एक। टैगोर, गांधी को "महात्मा" या “Great Soul” की उपाधि देने वाले पहले व्यक्ति थे। गांधी ने टैगोर को "गुरुदेव" या “Revered Teacher” कहा था।

उन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है - टैगोर ने साहित्य में तो गांधी ने राजनीतिक विचारों को लेकर। दोनों ही महान पुरुष एक दूसरे के समकालीन थे और दोनों का उपनिवेशवादी और अनियंत्रित पूंजीवाद के खिलाफ विरोध था। लेकिन इन सब के बावजूद वे एक दूसरे के कड़े आलोचक और वैचारिक विरोधी भी थे।रबीन्द्रनाथ टैगोर, गाँधी के असहयोग आंदोलन, चरखा कातने जैसे आंदोलनों के घोर आलोचक थे।

लेकिन इतने वैचारिक मतभेदों के बाद भी वे एक दूसरे का सम्मान करते थे। महात्मा गाँधी ने स्वयं और गुरुदेव के बीच वैचारिक मतभेदों को लेकर कहते हैं कि, " मैंने अपने और गुरुदेव के बीच कोई मतभेद नहीं पाया। शुरुआत में तो हमारे बीच मतभेद थे भी लेकिन अब मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे बीच कोई विरोध था ही नहीं।"

गाँधी और टैगोर के बीच हुए संवादों से आप उनके बीच की आलोचना और आत्मीयता को समझ सकते हैं।रबीन्द्रनाथ टैगोर कलकत्ता की एक प्रसिद्ध पत्रिका मॉडर्न रिव्यू में मई 1921 को गाँधी के असहयोग आंदोलन की आलोचना में लिखते हैं:

स्वराज क्या है! यह माया है, यह एक धुंध की तरह है जिसका अनन्तकाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालाँकि हम पश्चिम से सीखे विचारों द्वारा खुद को भ्रमित कर सकते हैं लेकिन स्वराज हमारा उद्देश्य नहीं है। हमारी लड़ाई आध्यात्मिक लड़ाई है। यह मानवता के लिए है। हम मनुष्य को राष्ट्रीय अहंकार के इन बंधनों से मुक्त करने के लिए हैं जो चारों ओर से उनको घेरे हुए हैं।

गाँधी इस आलोचना का जवाब देते हुए जून 1921 को 'यंग इंडिया' में 'कवि की चिंता' नाम के शीर्षक में लिखते हैं:

मुझे लगता है कि कवि( रविंद्र नाथ टैगोर) असहयोग आंदोलन के नकारात्मक पहलू पर अनावश्यक रूप से चिंतित हो रहे हैं। हमने 'नहीं' कहने की क्षमता को खो दिया। अब सरकार से असहमत होना जैसे अराजक हो गया है या यूँ कहें बिलकुल पाप हो गया है। जानबूझकर सहयोग करने से इनकार करना आवश्यक निराई प्रक्रिया की तरह है जिसका सहारा एक किसान को बुवाई से पहले लेना पड़ता है। हर किसान ये भी जनता है कि बढ़ती हुयी फसल की निराई करना भी जरूरी है। कृषि के लिए निराई उतनी ही आवश्यक है जितनी बुवाई।

गाँधी, टैगोर से अपनी दोस्ती के बारे में लिखते हुए कहते हैं:

मैं कई मामलों में डॉ टैगोर से अलग नहीं हूं। कुछ मामलों में हमारे बीच निश्चित रूप से मतभेद हैं। यह अजीब भी होगा अगर ऐसा नहीं होता है तो.... वास्तव में हमारे बीच की दोस्ती हमारे बीच के बौद्धिक अंतरों से कहीं बड़ी और सच्ची है।

अपनी बीमारी के दौरान गाँधी द्वारा भेजी गयी शुभकामनाओं पर रबीन्द्रनाथ टैगोर लिखते हैं:

आपकी निरंतर शुभकामनाओं ने मुझे अंधकार से उजाले और जीवन की वास्तविकता से परिचय करा दिया है। मैं अपना पहला धन्यवाद आपको भेजता हूँ।

पंडित जवाहर लाल नेहरू 1941 में अपनी जेल डायरी में टैगोर और गाँधी के बारे में लिखते हुए कहते हैं:

"गांधी और टैगोर दोनों एक दूसरे से पूरी तरह से अलग हैं फिर भी दोनों ठेठ भारतीय प्रकृति के हैं, दोनों भारत के महापुरुषों में से एक हैं .. लंबे समय से मैंने अनुभव किया है कि दोनों शख़्सियतें दुनिया में उत्कृष्ट उदाहरण हैं। बेशक दुनिया में अपने-अपने क्षेत्र में बहुत से ज्ञानी लोग हो सकते हैं महान हो सकते हैं। यह किसी एक गुण की वजह से नहीं है। बल्कि मुझे लगता है कि आज दुनिया के महापुरुषों में गांधी और टैगोर सर्वश्रेष्ठ इंसानों में से एक हैं। ”

लेखक- अम्बरीश कुमार

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