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Saturday, June 20, 2020

नेपोटिज्म से अधिक घातक, नेपोटिज्म के कारण होने वाला पक्षपात है।

पटना में एक हमारे गणित के शिक्षक थे। बहुत पैसा होने के बावजूद भी बड़े ही "डाउन टू अर्थ" थे। अनुशासन को लेकर बेहद ही कठोर थे। कक्षा में जब भी टेस्ट की प्रक्रिया सम्पन्न होती, तो एक लड़का हर बार ही टॉप करता था। कई दिनों बाद पता चला कि वह लड़का उसी शिक्षक का बेटा है। लेकिन कक्षा में उनके मध्य व्यवहार व बातचीत बिल्कुल ही अन्य छात्रों की तरह थे, इसलिए किसी के लिए भी बड़ा मुश्किल था उनके मध्य पिता-पुत्र के रिश्ते को पहचानना।

वे उसी तरह अपने बच्चे को कक्षा में डांटते या पीटते थे, या यूं कहें कि अन्य छात्रों से ज्यादा। सभी के लिए बड़ा ही मुश्किल था एक पिता-पुत्र के निजी रिश्ते को इस कदर शिक्षक-छात्र के पेशेवर रिश्ते के रूप में देखना।

मैंने उससे पूछा, की तुम्हारे पिताजी का व्यवहार तुम्हारे साथ क्या घर में भी ऐसा ही है..बिल्कुल अनुशासनमय, कड़ा व पेशेवर। उसने कहा, बिल्कुल नही..वे घर में बिल्कुल अन्य पिताओं की ही तरह है।

मैंने पूछा..तुम गणित में इतने दक्ष कैसे हो?
उसने कहा..पिताजी की बदौलत। बचपन से ही वे मुझे गणित पढ़ा रहे है। आज भी घर में समय मिलने पर वह मुझे अपने तरीके व अपने अनुभवों से गणित में कुशल बनाने का प्रयास करते है। साथ मे यह भी कहते है दुनिया को बखूबी तभी जान पाओगे, तभी कुछ सीख पाओगे जब अपने तरीके व अपने नजरिये से सोचोगे। 

अमीर होने या एक कुशल गणितज्ञ के पुत्र होने का तुम्हें थोड़ा बहुत लाभ जरूर मिलेगा, लेकिन तुम्हें भी आम विद्यार्थियों की भांति ही अध्ययन व संघर्ष का मार्ग चुनना होगा। तभी तुम अपने कैरियर के साथ ईमानदारी से समझौता कर पाओगे। बस यही वजह है उनके और मेरे मध्य पेशेवर रिश्ते में रहने का। बाकी कक्षा में तो मैं भी उनके लिए तुमलोगो की भांति ही एक सामान्य छात्र हूँ। 

अब तुम ही बताओ अगर वे मेरे साथ थोड़ा सा भी नरम या ज्यादा लाड़-प्यार वाला बर्ताव करे, तो क्या अन्य छात्रों में उनके प्रति हीन भावना उत्पन्न नही हो जाएगी। क्या वे मेरे बेहतर परिणाम को शंका की दृष्टि से नही देखेंगे। वे मेरे भीतर के हुनर पर संदेह नही करेंगे। उसकी बातें व उसके पिता की सोच ने मुझे बेहद ही प्रभावित किया।

नेपोटिज़्म की गलत बात यह नही है कि बड़े या प्रसिद्ध लोगो के बच्चे अच्छा कर रहे है, बल्कि गलत यह कि उन्हें वह विशेषाधिकार दिए जा रहे..जिससे उनका मार्ग सरल व औरों का मार्ग कठिन प्रशस्त हो रहा है। यही प्रवृति सामान्य व आम लोगों के बीच कुंठा उत्पन्न करती है। और वे इस कठिन मार्ग में आए संघर्ष के बोझ तले दब जाते है और थक हार कर बैठ जाते है।

अंततः यही संदेश देना चाहूंगा..
सबका संघर्ष भिन्न है और उस संघर्ष का बोझ असहनीय भी, लेकिन इन संघर्षो के मध्य अनवरत चलते रहने का नाम ही तो जिंदगी है। 

- आशीष झा 

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1 comment:

  1. Bahut badhia tarksangat aur kartavyanishtha shikshak ke dayitwa ka bayan karna

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