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Sunday, June 21, 2020

आरएसएस के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार, 'डॉक्टरजी' से जुड़ी वो बातें जो बहुत कम लोग जानते हैं: पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि


22 जून 1897- रानी विक्टोरिया की ताजपोशी की 60वीं सालगिरह थी। जहां सब लोग खुशियां और जश्न और मना रहें थे वहीं एक आठ साल का एक बच्चा शांत और दुखी था। उस आठ साल के बच्चे ने ताजपोशी में हिस्सा नहीं लिया और घर आ गया। घर पहुंचकर मिठाई फेंकी और एक कोने में जाकर बैठ गया। घर के लोगों ने पूछा ''केशव, क्या तुम्हें मिठाई नहीं मिली'?"
केशव ने कहा- "मिली थी, लेकिन इन अंग्रेजों ने हमारे खानदान को खत्म कर दिया, हम इनके समारोह में कैसे हिस्सा ले सकते हैं?''

केेेशव नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल में पढ़ने गया, एक दिन स्कूल में किसी अधिकारी का दौरा था और उस दौरान वह स्कूल में वंदेमातरम गाने लगा। स्कूल ने उसे निष्काषित कर दिया क्योंकि अंग्रेजी शासन में वंदे मातरम गाना अपराध था।

उस समय वह आठ साल का बच्चा केशव, आज विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। सही पढा है आपने! आज हम बात कर रहे हैं आरएसएस के संस्थापक , डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की। 
आज उनकी पुण्यतिथि है। 21 जून 1940 को 51 वर्ष की आयु में टाइफाइड के कारण उनकी मृत्यु हुई थी।

आइये जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ बातों को जिसकी जानकारी बहुत कम लोगो को है-


1.नागपुर, डॉ हेडगेवार की कर्मभूमि थी न कि जन्मभूमि :
आरएसएस के कई आलोचकों ने इसके शुरुआती वर्षों को महाराष्ट्र के ब्राह्मणों के वर्चस्व से जोड़ा है। लेकिन, आरएसएस के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार का परिवार मूल रूप से तेलंगाना क्षेत्र के 'कांदकुरती' गांव से था। गाँव के पास गोदावरी, वंजरा और हरिद्रा नदियों का पवित्र संगम है। इस संगम का उल्लेख कई भारतीय पवित्र ग्रंथों में मिलता है। इस स्थान पर तीन मजबूत भारतीय भाषाओं - कन्नड़, तेलुगु और मराठी का संगम भी देखा गया। एक समय, यह स्थान विद्वानों का केंद्र था। लेकिन बेहतर अवसरों की तलाश के लिए, कई ब्राह्मण परिवारों ने तेलंगाना क्षेत्र छोड़ दिया और उनमें से कई नागपुर में बस गए।  

2.मात्र 13 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया :
हेडगेवार, अपने पिता बलिराम पंत हेडगेवार और माता रेवतीबाई के छह बच्चों में पांचवीं संतान थे। 13 साल की उम्र में, केशव ने प्लेग महामारी में अपने माता-पिता दोनों को खो दिया था और स्कूल में पढ़ाई के दौरान उन्हें गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।

3. कांग्रेस में सक्रिय थे :
1919 के आसपास, हेडगेवार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में बहुत सक्रिय हो गए। उन्होंने 1919 में कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में भाग लिया। वह नागपुर कांग्रेस में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुयायियों द्वारा गठित समूह 'राष्ट्रीय मंडल' के एक सक्रिय सदस्य थे। उन्होंने हिंदी साप्ताहिक 'संकल्प' को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से काम किया। भारत के राष्ट्रीय नायकों के जीवन के माध्यम से युवाओं को प्रेरित करने के लिए, उन्होंने 'राष्ट्रीय उत्सव मंडल' की स्थापना की।


4. स्वदेशी आंदोलन के लिए जेल : 
मई 1921 में, हेडगेवार को महाराष्ट्र क्षेत्र में काटोल और भरतवाड़ा में स्वदेशी आंदोलन के दौरान उनके अंग्रेजो के खिलाफ भाषणों के लिए 'देशद्रोह' के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और एक वर्ष के लिए ब्रिटिश न्यायाधीश द्वारा जेल की सजा सुनाई गई। जुलाई 1922 में उन्हें अजानी जेल से रिहा कर दिया गया और उसी शाम, एक सार्वजनिक रिसेप्शन का आयोजन किया गया। इसमें तत्कालीन वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू ( प. जवाहरलाल नेहरू के पिता) ने सभा को संबोधित किया था।

5. हिंदुओं के लिए एक संगठन स्थापित करने का फैसला :
हेडगेवार को 1922 में प्रांतीय कांग्रेस का संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया था। वह हिंदुस्तानी सेवा दल, स्वयंसेवकों के कांग्रेस विंग का भी हिस्सा थे। 1923 में खिलाफत आंदोलन के बाद जो साम्प्रदायिक दंगे हुए, वह संघ की स्थापना का तत्कालीन कारण के रूप में जाना जाता है। हेडगेवार ने महसूस किया कि कांग्रेस का नेतृत्व हिंदुओं की चिंता को दूर करने में विफल रहा, उनका मन कोंग्रेस से उठ-सा गया और इसलिए हिंदुओं को एकजुट करने के लिए एक संगठन स्थापित करने का फैसला लिया।

6. आरएसएस का नामकरण:
हालांकि 1925 में संघ की स्थापना 'विजयदशमी' के दिन हुई थी, लेकिन संगठन का नाम बहुत बाद में तय किया गया था। 17 अप्रैल 1926 को हेडगेवार ने 26 स्वयंसेवकों द्वारा भाग लेने के लिए एक बैठक बुलाई। संगठन का नाम तय करने के लिए एक विस्तृत चर्चा हुई। कई सुझावों के बाद तीन नामों को अंतिम रूप दिया गया - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटाक मंडल और भद्ररथोदरक मंडल। इन तीन नामों पर सबसे अधिक विचार-विमर्श हुआ और अंत में नाम 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' चुना गया।

21 जून 1940 को हुई उनकी मृत्यु से लेकर आज तक उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग नजरिए से किया है। उन्होंने अपने जीवन, गतिविधियों या चिंतन का कोई लिखित प्रमाण अपने पीछे नहीं छोड़ा है। हेडगेवार का ऐसा कोई आलेख नहीं मिला, जिससे उनके विचारों और तजर्कों के बारे में बहस की जा सके। उनके निधन के बाद संघचालक की जिम्मेदारी माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर को सौंप दी गई और वर्तमान में डॉ मोहनराव मधुकर भागवत यानी मोहन भागवत यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
(-कड़क मिजाज, आलोक चटर्जी)

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5 comments:

  1. Thankou mr Kadak mijaji for this information. He is the most respected person in Nagpur. Proud to be a citizen of India proud to be a Hindu.

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  2. May I send some of my poems? If yes, Where should I contact for this?

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  3. Aapki jaankari hmesa kaam ki hoti hai isme humesha kuch naya sikhne ko milta hai. Mera poora group aapka fan hai sir

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